मौलिक अधिकार क्या है Maulik Adhikar Kya Hai, पूरी जानकारी

भारत एक लोकतांत्रिक देश है, किसी भी देश लोकतंत्र उस देश के रहने वाले वाले सभी नागरिकों से मिलकर बनता है, एक स्वस्थ्य लोकतंत्र तभी संभव है जब हर एक व्यक्ति को कुछ ऐसे अधिकार दिए जिनसे उसके अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा की जा सके।

भारत में सभी नागरिकों को कुछ समान मूल अधिकार दिए गए है, जिससे वे अपने जीवन में किसी ऐसी समस्या का सामना न करना पड़े जिसकी मदद से किसी राज्य या कानून के द्वारा उनके खिलाफ किसी भी तरह से हानि पहुंचाई जा सके।

Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, मौलिक अधिकारों के बारे में, ये क्या होते है? इनके क्या काम है तथा इससे जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में भी।

मौलिक अधिकार क्या है –

मूल अधिकार या मौलिक अधिकार को अंग्रेजी में फंडामेंटल राइट कहते हैं इसका यह नाम क्यों पड़ा है मूल अधिकारी व मौलिक अधिकार वे अधिकार होते हैं जो किसी व्यक्ति के लिए ध्यान में रखकर बनाए गए है, यह अधिकार किसी सरकार, कंपनी अथवा संस्था के लिए नहीं है।

यह हमेशा किसी व्यक्ति (पर्सनल) पर लागू होता है, किसी व्यक्ति के जीवन जीने के लिए एकदम जरूरी है यदि आप किसी व्यक्ति से उसका मूल अधिकार छीन लेंगे तो उसकी जिंदगी जिंदगी नहीं जेल हो जाएगी।

जेल में आपके मूल अधिकार छीन लिए जाते हैं ना आपको घूमने-फिरने की स्वतंत्रता है ना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है यहाँ किसी भी व्यक्ति के 90% मूल अधिकार छीन लिए जाते है।

Maulik Adhikar Kya Hai

जेल में आपकी जिंदगी बाहरी दुनिया से पूरी तरह बदल जाती है और जेल में बोलने की भी पूरी आजादी नहीं दी जाती है, सोचिए अगर हमारी आजादी कोई जेल के बाहर भी 100% छीन ले तो हमारी आजादी ही नहीं रह जाएगी।

तो आजादी जीवन जीने के लिए एकदम जरूरी है प्राकृतिक है इसलिए कि हम इसे नैसर्गिक कहते हैं और इसे मूल अधिकार इसलिए कहा जाता है।

इसे कानूनी अधिकार इसलिए नहीं कहा जाता है कानूनी अधिकार वे अधिकार होते हैं जो हमसे कोई व्यक्ति नहीं छीन सकता हमारा पड़ोसी नहीं छीन सकता है लेकिन सरकार हमसे छीन सकती है लेकिन मूल अधिकार वह अधिकार है जो ना ही हमसे कोई पब्लिक छीन सकता है और न ही हमारी सरकार छीन सकती है।

तो वैसे अधिकार जो जीवन जीने के लिए अति आवश्यक है जो नेचुरल या नैसर्गिक है, जिन्हें न पब्लिक छीन सकती है और ना ही सरकार छीन सकती है उसे हम मूल अधिकार के नाम से जानते है।

यह मूल अधिकार अमेरिका के संविधान से लाए गए है, वहां पर यह लिखित रूप से मूल अधिकार हैं, वहाँ से इसे अपने भारतीय संविधान में लाया गया और संविधान के भाग-3 में, आर्टिकल 12 से लेकर आर्टिकल 35 के अंदर रखा गया है।

तो भारतीय संविधान का भाग-3 जो है यह हमें मौलिक अधिकार देता है, अधिकार को हम फ्रांसिस भाषा में “मैग्ना कार्टा” कहते हैं, इस शब्द का प्रयोग इंग्लैंड और ब्रिटेन में हुआ था।

Maulik Adhikar Kya Hai –

हमारे भारतीय संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लेख संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद या आर्टिकल 12 से 35 में किया गया है।

इसमें 12, 13, 33, 34 तथा 35 क अधिकारों के सामान्य रूप के सामान्य रूप के बारे में बताते है।

संविधान में 44 वें संशोधन के पास होने के पूर्व संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों को सात श्रेणियों में बांटा गया था, लेकिन इसमे किये गए संशोधन के बाद संपति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता दे दी गई, वर्तमान में भारतीय नागरिकों को छ्ह मौलिक अधिकार प्राप्त है जो कुछ इस प्रकार है –

1. समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) –

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत निम्न अधिकार कानून के समक्ष समानता संयुक्त राज्य अमेरिका के संविधान से लिया गया है।

कानून के समक्ष समानता और समान संरक्षण (अनुच्छेद 14) – यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि राज्य भारत के क्षेत्र के भीतर किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता या कानूनों से समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा।

किसी भी व्यक्ति के द्वारा जाति, लिंग, धर्म, तथा मूलवंश के आधार पर सार्वजनिक स्थानों पर कोई भेदभाव करना इस अनुच्छेद के द्वारा वर्जित किया गया है।

यह राज्य द्वारा मनमाने भेदभाव को प्रतिबंधित करता है और समान परिस्थितियों में समान व्यवहार की गारंटी प्रदान करता है, लेकिन बच्चों एवं महिलाओं को विशेष संरक्षण का प्रावधान है।

विशिष्ट आधारों पर भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15) –

यह प्रावधान केवल धर्म, मूलवंश , जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित करता है, सार्वजनिक नियोजन में अवसर की समानता प्रत्येक नागरिक को प्राप्त है

साथ ही यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी नागरिक को केवल इन आधारों पर किसी अयोग्यता, दायित्व या प्रतिबंध के अधीन नहीं किया जाएगा।

लेकिन यदि सरकार जरूरी समझे तो उन वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकती है जिनका राज्य की सेवा में प्रतिनिधित्व कम है।

लोक नियोजन के विषय में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16) –

यह आर्टिकल सार्वजनिक रोजगार या नियुक्ति के मामलों में अवसर की समानता की गारंटी प्रदान करता है, यह आर्टिकल इन मामलों में केवल धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग, वंश, जन्म स्थान या निवास स्थान के आधार पर किये जाने वाले भेदभाव पर प्रतिबंध लगाता है।

अस्पृश्यता का उन्मूलन (अनुच्छेद 17) –

इस अनुच्छेद के द्वारा अस्पृश्यता का अंत किया गया है और किसी भी रूप में इसके अभ्यास को प्रतिबंधित करने का कार्य करता है।

यह आर्टिकल अस्पृश्यता को एक सामाजिक बुराई के रूप में मान्यता देता है और भारतीय समाज में इस भेदभावपूर्ण प्रथा को खत्म करना सुनिश्चित करता है।

यदि कोई ऐसा करता पाया जाता है तो उस व्यक्ति को ₹500 जुर्माना अथवा 6 महीने की कैद का प्रावधान है, यह प्रावधान भारतीय संसद अधिनियम 1955 के द्वारा लाया गया।

उपाधियों का अंत (अनुच्छेद 18) –

अनुच्छेद 18 राज्य को व्यक्तियों को सैन्य और शैक्षणिक विशिष्टताओं को छोड़कर उपाधियाँ प्रदान करने से प्रतिबंधित करता है। यह किसी विदेशी राज्य से या उसके अधीन कोई उपाधि, उपहार, परिलब्धियाँ या कार्यालय स्वीकार करने के संबंध में कुछ प्रावधान भी बनाता है, जिसके अनुसार ही ऐसे कार्य किये जा सकते है।

अगर आसान भाषा में कहें तो अनुच्छेद 18 के द्वारा ब्रिटिश सरकार द्वारा दी गई उपाधियों का अंत कर दिया गया अब सिर्फ शिक्षा एवं रक्षा में उपाधि देने की परंपरा जारी रखी गई है।

2. स्‍वतंत्रता का अधिकार –

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 से लेकर 22 तक हमें ये अधिकार देते है, ये प्रावधान व्यक्तिगत स्वतंत्रताओं और स्वायत्तता की रक्षा करते हैं, जो कुछ इस प्रकार है –

संविधान का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को छह अधिकारों की गारंटी देता है, ये अधिकार है –

बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(a)) –

भारतीय संविधान का यह प्रावधान नागरिकों को भाषण, लेखन, मुद्रण या किसी अन्य माध्यम से अपने विचारों, रायों, विश्वासों और आस्थाओं को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करने की स्वतंत्रता प्रदान देता है, हालाँकि, सार्वजनिक व्यवस्था, मानहानि, अपराध के लिए उकसाना आदि जैसे आधारों पर राज्य द्वारा उचित प्रतिबंध किसी व्यक्ति अथवा लोगों पर लगाए जा सकते है।

सभा करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(b)) –

नागरिक बिना किसी अथियार के शांतिपूर्वरक इकट्ठा हो सकते है, इस सार्वजनिक समूह के अंतर्गत बैठक, प्रदर्शन और जुलूस निकालने का अधिकार दिया गया है लेकिन हड़ताल करने का अधिकार नहीं दिया गया है।

संघ बनाने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(c)) –

सभी भारतीय नागरिकों को संघ, संघ या सहकारी समितियाँ बनाने का अधिकार है, जो उन्हें सामूहिक रूप से सामान्य हितों या लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद करती हो।

लेकिन सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता, या भारत की संप्रभुता और अखंडता के हित में उचित प्रतिबंध लोगों पर लगाए जा सकते है।

आवागमन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(d)) –

भारत के प्रत्येक नागरिक को भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार पर जनता के सामान्य हितों और किसी अनुसूचित जनजाति के हितों की सुरक्षा के आधार पर उचित प्रतिबंध सरकार के द्वारा लगाए जा सकते है।

निवास करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(e)) –

लोगों को भारत के किसी भी हिस्से में निवास करने और स्थाई रूप से बसने की स्वतंत्रता है, जिससे भौगोलिक गतिशीलता और निवास स्थान निर्धारित करने में व्यक्तिगत विकल्प का प्रयोग हो सके।

व्यापार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19(1)(g)) –

सभी नागरिकों को किसी भी पेशे का अभ्यास करने या अपनी पसंद के किसी भी व्यवसाय, व्यापार करने का अधिकार है, लोग जो चाहें रोजगार के तरीके अपने अनुसार चुन सकते है, लेकिन जानता के समय हितों को ध्यान में रखकर कुछ प्रतिबंध लगाए जा सकते है।

अपराधों के लिए दोष सिद्ध होने के संबंध में संरक्षण (अनुच्छेद 20) –

यह अनुच्छेद, भारतीय नागरिक, विदेशी या किसी व्यक्ति को मनमाने और अत्यधिक दंड के खिलाफ सुरक्षा देने का काम करता है।

दांडिक विधियों से सरंक्षण (अनुच्छेद 20(1)) –

किसी व्यक्ति को उसी समय लागू कानून का उल्लंघन करने के लिए दोषी माना जा सकता है, तत्कालीन समय पर लागू कानून द्वारा निर्धारित दंड से अधिक दंड नहीं दिया जा सकता।

दोहरे दंड से संरक्षण (अनुच्छेद 20(2)) –

किसी व्यक्ति को उस अपराध के लिए दोबारा दंडित नहीं किया जा सकता है जिसके लिए उसे पहले ही बरी या दोषी ठहराया गया हो।

अपने ही विरुद्ध गवाही देने से संरक्षण (अनुच्छेद 20(3)) –

किसी भी गुनाह के लिए आरोपी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्यकारी नहीं किया जा सकता है, मतलब कोई भी व्यक्ति खुद के खिलाफ गवाही नहीं दे सकता है।

जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का संरक्षण (अनुच्छेद 21) –

संविधान का अनुच्छेद 21 यह प्रावधान करता है कि कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।

व्यक्तिगत अधिकारों की आधारशिला के रूप में कार्य करने वाला यह अनुच्छेद भारतीय नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों के लिए उपलब्ध है।

शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21A) –

अनुच्छेद 21A, शिक्षा का अधिकार देने का कार्य करता है, 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा के अधिकार की गारंटी इस अनुच्छेद के द्वारा दी जाती है।

इस प्रावधान को 2002 के 86वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया, यह आर्टिकल राज्य को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच प्रदान करने का आदेश देता है, इसके साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिले।

गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ संरक्षण (अनुच्छेद 22) –

गिरफ्तारी और निरोध के खिलाफ संरक्षण अनुच्छेद 22, गिरफ्तार या हिरासत में लिए गए व्यक्तियों को कुछ सुरक्षा प्रदान करता है।

जिसमें यह मनमाने ढंग से हिरासत को रोकता है और हिरासत में व्यक्तियों के साथ उचित व्यवहार सुनिश्चित करता है, गिरफ्तारी के आधारों के बारे में सूचित किया जाना, कानूनी सलाहकार से परामर्श करने और उनका बचाव करने का अधिकार और गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का अधिकार आदि शामिल है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार –

भारतीय नागरिकों को विशेष रूप से कमजोर वर्ग को शोषण से बचाने के लिए अनुच्छेद 23, अनुच्छेद 24 कुछ सुरक्षा उपाय प्रदान करते हैं –

मानव तस्करी एवं बंधुआ मजदूरी का निषेध (अनुच्छेद 23) –

किसी भी तरीके से मानव की तस्करी और बंधुआ मजदूरी के रूप में प्रयोग करना निषेध करता है और ऐसा करना दंडनीय अपराध है।

कारखानों में बच्चों के रोजगार का निषेध (अनुच्छेद 24) –

चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों के रोजगार को किसी भी तरह से लेबर के रूप में प्रयोग करना, किसी भी कारखाने, खदान या अन्य खतरनाक गतिविधियों में काम करने के लिए, प्रतिबंधित किया गया है।

धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार –

अनुच्छेद 25 से 28, व्यक्तियों को अन्त:करण की स्वतंत्रता और धर्म को अबाध रुप से मानने, पालन करने और उसका प्रचार करने की स्वतंत्रता की गारंटी दी जाती हैं, ये अनुच्छेद, राज्य को तटस्थ रहने और सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार के द्वारा धर्मनिरपेक्षता सुनिश्चित करने का प्रयास करते है।

अंतरात्मा की स्वतंत्रता तथा धर्म को मानने, आचरण एवं प्रचार करने की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) –

अनुच्छेद 25, सभी व्यक्तियों को अंतरात्मा की स्वतंत्रता तथा स्वतंत्र रूप से धर्म को मानने, पालन करने और उसका प्रचार करने का समान अधिकार है।

अंतरात्मा की स्वतंत्रता, अंगीकार करने का अधिकार, अभ्यास करने का अधिकार, धार्मिक पूजा, अनुष्ठान, समारोह, विश्वासों और विचारों का स्वतंत्र रूप से अभ्यास करना, प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है।

लेकिन इस अनुच्छेद के तहत किसी अन्य व्यक्ति को अन्य धर्म में परिवर्तित करने का अधिकार नहीं दिया गया है।

धार्मिक कार्यों के प्रबंधन की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 26) –

धार्मिक कार्यों / प्रयोजनों के लिए संस्थानों की स्थापना और बनाए रखना, धर्म विषयक कार्यों का प्रबंधन, चल और अचल संपत्ति का स्वामित्व और अधिग्रहण करने का अधिकार यह अनुच्छेद देता है।

किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए करों के विषय में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 27) –

संविधान का अनुच्छेद 27 किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय को बढ़ावा देने या बनाए रखने के लिए राज्य को कर आरोपित करने से प्रतिबंध करने की शक्ति प्रदान करता है।

साथ ही यह भी सुनिश्चित किया जाता है कि राज्य धर्म के मामलों में तटस्थ रहे, जिससे सभी नागरिकों के लिए समानता और लोगो में धार्मिक स्वतंत्रता की भावना को बढ़ावा मिले।

शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक उपासना में उपस्थित होने के विषय में स्वतंत्रता (अनुच्छेद 28) –

अनुच्छेद 28, शैक्षणिक संस्थानों की विभिन्न श्रेणियों में धार्मिक शिक्षा देने के लिए प्रावधान करता है, जो कि कुछ इस प्रकार है –

राज्य द्वारा पूर्ण रुप से संचालित संस्थान में धार्मिक शिक्षा पूर्ण रुप से प्रतिबंधित किया गया है।

राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त संस्थान में धार्मिक शिक्षा स्वैच्छिक आधार पर अर्थात् व्यक्ति की सहमति से मान्य है।

राज्य से आर्थिक सहायता प्राप्त करने वाले संस्थान में धार्मिक शिक्षा स्वैच्छिक आधार पर यानी व्यक्ति की सहमति लिया जा सकता है।

राज्य द्वारा प्रशासित लेकिन किसी ट्रस्ट के तहत स्थापित संस्थान में धार्मिक शिक्षा लेने की अनुमति होती है।

सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार –

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और अनुच्छेद 30, अल्पसंख्यकों के संस्कृति, भाषा और लिपि के संरक्षण के अधिकारों की रक्षा करने का कार्य करते है।

अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण (अनुच्छेद 29) –

अनुच्छेद 29 के बनाए गए नियमों के अनुसार भारत के प्रत्येक नागरिकों को , जिसकी अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति हो, उसे संरक्षित करने का अधिकार दिया जाता है।

साथ ही किसी भी नागरिक को मूलवंश,धर्म, जाति या भाषा के आधार पर राज्य द्वारा संचालित या राज्य निधि से सहायता प्राप्त करने वाले किसी भी शैक्षणिक संस्थान में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।

अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थान स्थापित और संचालित करने का अधिकार (अनुच्छेद 30) –

अनुच्छेद 30 धार्मिक और भाषा के तौर पर ही अल्प्संख्यकों को कुछ अधिकार देता है, जैसे कि उनकी रूचि के शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उनका प्रबंधन करने का अधिकार, अपने बच्चों को उनकी अपनी भाषा में शिक्षा प्रदान करने का अधिकार प्रदान करता है।

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