हरित क्रांति क्या है, Harit Kranti Kya Hai प्रभाव और फायदे

Harit Kranti Kya Hai, भारत की अर्थव्यवस्था एक कृषि प्रधान देश के रूप में जानी जाती है, लेकिन कुछ दशक पहले तक यहाँ कृषि उतनी अच्छी स्थिति में नहीं थी, कृषि के रूप में हमारा उत्पादन सामान्य से कम ही होता था।

आजादी के बाद सरकार ने इस दिशा में कई कदम उठाए जिससे कि कम जमीन पर अधिक से अधिक पैदावार उत्पन्न हो, इसी क्रम में “हरित क्रांति” भी एक योजना है, जिसकी वजह से आज भारत में कृषि उत्पादन आवश्यकता से अधिक संभव हो पाया।

नमस्कार दोस्तों हमारे ब्लॉग पर आपका स्वागत है, आज हम बात करने जा रहे है, हरित क्रांति के बारे में… यह क्या हैHarit Kranti Kya Hai, हरित क्रांति के क्या उद्देश्य थे और इसका भारतीय कृषि उद्योग पर क्या प्रभाव पड़ा, तथा इससे जुड़े अन्य बिंदुओं पर भी चर्चा करेंगे, उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख पसंद आएगा।

Table of Contents

Harit Kranti Kya Hai? –

Harit Kranti Kya Hai, हरित क्रान्ति से अर्थ, 1960 दशक के मध्य में कृषि उत्पादन में हुई उस भारी वृद्धि से है जो कुछ थोड़े से समय में उन्नतिशील बीजों, रासायनिक खादों एवं नवीन तकनीकों के फलस्वरूप हुई।

हरित क्रांति 1960 के दशक में “नॉर्मन बोरलॉग” के द्वारा शुरू किया गया, इन्हें ही विश्व में हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है, तथा भारत में “एस. स्वामीनाथन” को हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है।

भारत में हरित क्रांति 1966 में शुरू हुई जिसमें, पारम्परिक कृषि के स्थान पर आधुनिक कृषि तकनीक द्वारा भारतीय कृषि में उत्पादन में भारी वृद्धि हुई।

चूँकि कृषि क्षेत्र में यह तकनीक एकाएक आई, तेजी से इसका विकास विस्तार हुआ और थोड़े समय में ही इससे इतने आश्चर्यजनक परिणाम निकले कि देश के योजनाकारी, कृषि विशेषज्ञों तथा राजनीतिज्ञों ने इस अप्रत्याशित प्रगति को “हरित क्रान्ति” नाम दिया।

Harit Kranti Kya Hai

इस योजना को हरित क्रान्ति की संज्ञा इसलिए भी दी गई कि क्योंकि इसके फलस्वरूप भारतीय कृषि का स्तर जीवन यापन के स्तर से ऊपर उठकर आवश्यकता से अधिक उत्पादन के स्तर पर आ गया।

तृतीय पंचवर्षीय योजना के प्रारम्भ से लेकर अब तक के वर्ष बहुत ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं, 1960-70 के दशक के मध्य के पश्चात् भारत में पारम्परिक कृषि व्यवस्थाओं के स्थान पर आधुनिक तकनीक का प्रयोगकिया जा रहा है।

जहां पारम्परिक कृषि देशी आगतों पर निर्भर करती है और इसमें कार्बनिक खादों, साधारण हलों एवं अन्य पारम्परिक पुराने कृषि औजारों एवं बैलों का प्रयोग होता है।

तो वहीं हरित क्रांति के आने के बाद, आधुनिक कृषि तकनीक में कीटनाशकों, कृषि मशीनरी, रासायनिक उर्वरकों, उन्नतशील बीजों, विस्तृत सिंचाई, डीजल एवं विद्युत् शक्ति आदि का प्रयोग किया जाता है।

1966 के पश्चात् देश में आधुनिक कृषि आगतों के प्रयोग में 10% की वार्षिक चक्रवृद्धि दर से वृद्धि हुई है। इसी दौरान पारम्परिक आगतों के प्रयोग में प्रतिवर्ष एक प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यह सरकार की सुनिश्चित कृषि नीति का ही परिणाम है।

कृषि के सम्बन्ध में सरकार की नीति यह है कि उन्नतशील बीजों का उपयोग किया जाय, रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग को बढ़ाया जाय, आधुनिक मशीनों एवं कृषि यन्त्रों को अधिकाधिक प्रयोग में लाया जाय, सिंचाई की सुविधाएँ बढ़ाई जाएँ, बहुफसली कार्यक्रम अपनाएँ जाएँ तथा कीट एवं खरपतवार नाशकों के उपयोग में वृद्धि की जाय, जिससे उत्पादन में बढ़ोत्तरी हो।

इसी क्रम में नई कृषि तकनीक के आगतों यथा-उर्वरकों, कीटनाशकों, कृषि मशीनरी से सम्बन्धित उद्योगों का तीव्र विकास हुआ है, फार्म यन्त्रीकरण और सिंचाई के बड़े कार्यक्रमों के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में विद्युत् और डीजल के उपयोग में काफी वृद्धि हुई है।

इस तरह चौथी पंचवर्षीय योजना के शुरुआत में, कृषि विकास के इतिहास हरित क्रांति के रूप में सबसे महत्वपूर्ण कदम उठाया गया, जिसके फलस्वरूप खाद्यान्न उत्पादन के क्षेत्र में आज भारत न सिर्फ निर्भर हुआ है बल्कि आज भारत से दूसरे देशों को अनाज एक्सपर्ट भी किया जाता है।

हरित क्रांति की आवश्यकता क्यों पड़ी? –

अंग्रेजों के समय से ही हमारे देश के किसानों की हालत दिन प्रतिदिन खराब होने लगी थी, यूरोपिय बाजारों में कपास और नील की मांग बढ़ने के कारण भारतीयों से जबरदस्ती इसकी खेती करवाई जाती थी।

जब फसल तैयार होती तो बहुत ही कम दामों पर इसको खरीद जाता था, अंग्रेज जमींदार इन किसानों के ऊपर अनेक तरह के टैक्स भी लगते थे, परिस्थितियाँ ऐसी थी कि फसल काटने के बाद किसान के पास अपना जीवन चलाने के लिए भी पैसा नहीं बचता था।

सूखा, बाढ़ और फसलों में महामारी जैसी हालत तो किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर कर देती थी, वर्ष 1947 में देश को आजादी मिलने से पहले बंगाल में भयंकर अकाल पड़ा था, जिसमें 20 लाख से ज्यादा भारतीयों की मौत हुई थी।

1947 तक भारत में कृषि योग्य भूमि पर केवल 10 फीसदी क्षेत्र तक ही सिंचाई के साधन उपलब्ध थे और आज की तरह किसी भी तरह के रासायनिक उर्वरक भी उपलब्ध नहीं थे।

इन सबका परिणाम यह हुआ कि एक समय जो भारत सोने की चिड़िया हुआ करता था, अंग्रेजों की गुलामी में ऐसा जकड़ा और गोरों ने हमें ऐसा लूटा कि भारत के लोगों का पेट भरने तक का फसल उत्पादन नहीं हो पा रहा था।

इसलिए देश के पहले प्रधानमंत्री के तौर पर “पंडित जवाहरलाल नेहरू” ने कहा था कि बाकी सब चीजों के लिए इंतजार किया जा सकता है, लेकिन कृषि के लिए नहीं, हमें जल्द से जल्द कृषि उत्पादन को बढ़ाना होगा।

सरकार की इसी कोशिश का परिणाम हमें हरित क्रांति के रूप में देखने को मिला।

कृषि की नई विकास विधि का स्वरूप-

कृषि की इस नई विकास विधि का प्रयोग सर्वप्रथम 1960-61 में गहन कृषि-जिला कार्यक्रम के नाम से देश के चुने गए सात जिलों में इस योजना को पायलट प्रोजेक्ट के रूप में शुरू किया गया।

पायलट प्रोजेक्ट में सफलता मिलने के बाद इसे अन्य जिलों में भी लागू कर दिया गया। इस विकास विधि का मूल उद्देश्य भारतीय कृषि में तकनीकी क्रान्ति लाकर अनाज के उत्पादन में वृद्धि करना तथा तीव्र आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत आधार बनाना था।

हरित क्रांति योजना के तहत किसानों को ऋण, बीज, खाद, कृषि यन्त्र एवं उपकरण आदि उपलब्ध कराना एवं केन्द्रित प्रयासों द्वारा दूसरे क्षेत्रों के लिए गहन कृषि का ढांचा तैयार करना इत्यादि चीजें शामिल थी।

हालांकि इन प्रयासों की सफलता अलग-अलग जिलो में अलग थी, फिर भी इनके द्वारा एकमुश्त कार्यक्रम और संकेन्द्रित क्रियाओं का एक सकारात्मक परिणाम निकला।

कार्यक्रम के प्रमुख अंग इस कार्यक्रम अथवा नीति के प्रमुख अंग है – रासायनिक खादों एवं कीटनाशक दवाओं के साथ ऊँची उपज वाले बीजों का प्रयोग, बहुफसली कार्यक्रम, सिंचाई की व्यवस्था व जल निकास का उचित प्रबन्ध, आधुनिक कृषि यन्त्रों एवं उपकरणों का प्रयोग, तथा सूखे से प्रभावित क्षेत्रों का क्रमबद्ध विकास इन जगहों पर सिंचाई के साधनों को विकसित करना आदि।

इसके साथ ही ऊँची उपज वाले बीजों की किस्मों, रासायनिक खादों के साथ अन्य आवश्यक कृषि आगत ‘हरित क्रान्ति’ के मूल योजना का मुख्य उद्देश्य है।

हरित क्रान्ति की उपलब्धियाँ –

हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश के कृषि क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, जिसके फलस्वरूप देश में कृषि उत्पादन बढ़ा है, खाद्यान्नों में आत्म निर्भरता आई हैं, व्यावसायिक कृषि को बढ़ावा मिला है, कृषकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन हुआ है।

कृषि आधिक्य में वृद्धि हुई है। हरित क्रान्ति की उपलब्धियों को कृषि में तकनीकी एवं संस्थागत परिवर्तन एवं उत्पादन में हुए सुधार के रूप में इस प्रकार देखा जा सकता है।

कृषि में तकनीक में हुए सुधार –

रासायनिक खाद का प्रयोग – नवीन कृषि नीति के परिणामस्वरूप रासायनिक उर्वरकों के उपभोग की मात्रा में तेजी से वृद्धि हुई है। 1960-61 में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग प्रति हेक्टेअर 2 किग्रा होता था जो 2008-09 में बढ़कर लगभग 128.6 किग्रा प्रति हेक्टेअर हो गया है।

इसी प्रकार, 1960-61 में देश में रासायनिक खादों की कुल खपत 2.92 लाख टन थी जो बढ़कर 2009-10 में 264.80 लाख टन हो गई है।

उन्नतशील बीजों के प्रयोग में वृद्धि –

हरित क्रांति के फलस्वरूप अधिक उपज देने वाले उन्नतशील बीजों का प्रयोग बढ़ा है तथा बीजों की नई-नई किस्मों की खोज की गई है। अभी तक अधिक उपज देने वाला कार्यक्रम गेहूँ, धान, बाजरा, मक्का व ज्वार जैसी फसलों पर लागू किया गया है परन्तु गेहूँ में सबसे अधिक सफलता प्राप्त हुई है।

नई विकास- विधि के अंतर्गत वर्ष 2008-09 में एक लाख कुन्तल प्रजनक बीज तथा 8.22 लाख कुन्तल आधार बीजों का उत्पादन हुआ तथा 216 लाख कुन्तल प्रमाणित बीज वितरित किए गए।

सिंचाई सुविधाओं का विकास-

नई विकास- विधि के अन्तर्गत देश में सिंचाई सुविधाओं का तेजी के साथ विस्तार किया गया है। 1951 में देश में कुल सिंचाई क्षमता 223 लाख हेक्टेअर थी जो बढ़कर 2009-10 में 1,082 लाख हेक्टेअर हो गई।

देश में वर्ष 1951 में कुल सिंचित क्षेत्र 209 लाख हेक्टेअर था जो बढ़कर 2008-09 में 980.5 लाख हेक्टेअर हो गया।

पौध संरक्षण –

इस योजना के अंतर्गत के अन्तर्गत पौध संरक्षण पर भी ध्यान दिया गया, खरपतवार एवं कीटों को नाश करने के लिए दवा छिड़कने का कार्य किया जाता है तथा टिड्डी दल पर नियन्त्रण करने का प्रयास किया जाता है, ताकि अच्छी किस्म के पौधों को संरक्षित किया जा सके।

बहुफसली कार्यक्रम –

बहुफसली कार्यक्रम का उद्देश्य एक ही भूमि पर वर्ष में एक से अधिक फसल उगाकर उत्पादन को बढ़ाना है। अन्य शब्दों में, भूमि की उर्वरता-शक्ति को नष्ट किए बिना, भूमि के एक इकाई क्षेत्र से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना ही बहु फसली कार्यक्रम कहलाता है।

1966-67 में 36 लाख हेक्टेअर भूमि में बहुफसली कार्यक्रम लागू किया गया। वर्तमान समय में भारत की कुल सिंचित भूमि के 65% भाग पर यह कार्यक्रम लागू है।

आधुनिक कृषि यन्त्रों का प्रयोग-

हरित क्रान्ति में आधुनिक कृषि उपकरणों जैसे-ट्रैक्टर, थ्रेसर, हार्वेस्टर, बुलडोजर तथा डीजल एवं बिजली के पम्पसेटों आदि ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।

इस प्रकार कृषि में पशुओं अथवा मानव शक्ति का प्रतिस्थापन संचालन शक्ति (Power) द्वारा किया गया है जिससे कृषि क्षेत्र के उपयोग एवं उत्पादकता में वृद्धि हुई है।

कृषि सेवा केन्द्रों की स्थापना –

कृषकों में व्यावसायिक साहस की क्षमता को विकसित करने के – उद्देश्य से देश में कृषि सेवा केन्द्र स्थापित करने की योजना लागू की गई है।

इस योजना में पहले व्यक्तियों को तकनीकी प्रशिक्षण दिया जाता है फिर इनसे सेवा केन्द्र स्थापित करने को कहा जाता है।

इसके लिए उन्हें राष्ट्रीकृत बैंकों से सहायता दिलाई जाती है। अब तक देश में कुल 1,146 कृषि सेवा केन्द्र स्थापित किए जा चुके हैं।

कृषि उद्योग निगम –

सरकारी नीति के अन्तर्गत 17 राज्यों में कृषि उद्योग निगमों की स्थापना की गई है। इन निगमों का कार्य कृषि उपकरण व मशीनरी की पूर्ति तथा उपज के प्रसंस्करण एवं भण्डारण को प्रोत्साहन देना है।

इसके लिए यह निगम किराया क्रय पद्धति के आधार पर ट्रैक्टर, पम्पसेट एवं अन्य मशीनरी को वितरित करता है।

कृषि विकास के लिए संस्थानों की स्थापना –

हरित क्रान्ति की प्रगति मुख्यतः फसल की अधिक उपज देने वाली किस्मों एवं उत्तम सुधरे हुए बीजों पर निर्भर करती है। इसके लिए देश में 400 कृषि फार्म स्थापित किए गए हैं।

इसके लिए 1963 में राष्ट्रीय बीज निगम की स्थापना की गई है। 1963 में ही राष्ट्रीय सहकरी विकास निगम की स्थापना की गयी जिसका मुख्य उद्देश्य कृषि उपज का विपणन, प्रसंस्करण एवं भण्डारण करना है।

तथा विश्व बैंक की सहायता से राष्ट्रीय बीज परियोजना भी प्रारम्भ की गई जिसके अन्तर्गत कई बीज निगम बनाए गए हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारिता विपणन संघ (नेफेड) एक शीर्ष विपणन संगठन है जो प्रबन्धन, वितरण एवं कृषि से सम्बन्धित चुनिन्दा वस्तुओं के आयात-निर्यात का कार्य करता है।

इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक की स्थापना कृषि वित्त के कार्य हेतु की गई है। कृषि के लिए ही खाद्य निगम, उर्वरक साख गारन्टी निगम, ग्रामीण विद्युतीकरण निगम आदि भी स्थापित किए गए हैं।

मृदा परीक्षण-

मृदा परीक्षण कार्यक्रम के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों की मिट्टी का परीक्षण सरकारी प्रयोगशालाओं में किया जाता है। इसका उद्देश्य भूमि की उर्वराशक्ति का पता लगाकर कृषकों को तदनुरूप रासायनिक खादों व उत्तम बीजों के प्रयोग की सलाह देना है।

वर्तमान समय में इन सरकारी प्रयोगशालाओं में प्रतिवर्ष लगभग 7 लाख नमूनों का परीक्षण किया जाता है। कुछ चलती-फिरती प्रयोगशालाएँ भी स्थापित की गई हैं जो गाँव-गाँव जाकर मौके पर मिट्टी का परीक्षण कर किसानों को सलाह देती हैं।

भूमि संरक्षण –

भूमि संरक्षण कार्यक्रम के तहत कृषि योग्य भूमि को क्षरण से रोकने तथा ऊबड़-खाबड़ भूमि को समतल बनाकर कृषि योग्य बनाया जाता है, यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश, राजस्थान, गुजरात तथा मध्य प्रदेश में तीव्र गति से लागू किया गया।

कृषि शिक्षा एवं अनुसन्धान –

कृषि उत्पादन में वृद्धि करने के लिए कृषि शिक्षा आवश्यक है, सरकार की कृषि नीति के अन्तर्गत कृषि शिक्षा का विस्तार करने के लिए पन्तनगर (उत्तराखण्ड) में पहला कृषि विश्वविद्यालय स्थापित किया गया।

वर्तमान में इनकी संख्या 27 हैं, इन विश्वविद्यालयों से सम्बद्ध 61 महाविद्यालय हैं जिनमें कृषि से सम्बन्धित शिक्षा प्रदान की जाती है।

एग्रीकल्चर में रिसर्च हेतु भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद् है जिसके पास 45 अनुसन्धान केन्द्र एवं प्रयोगशालाएँ हैं, इसके अलावा देश में 503 कृषि विज्ञान केन्द्र हैं जो शिक्षण एवं प्रशिक्षण का कार्य कर रहे हैं।

कृषि शिक्षा एवं प्रशिक्षण की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए विभिन्न संस्थाओं के कम्प्यूटरीकरण और इन्टरनेट की सुविधा दी गई है।

कृषि उत्पादन में सुधार –

हरित क्रांति ने भारतीय कृषि को उम्मीद से ज्यादा सफल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, कृषि के क्षेत्र में हुए सुधार कुछ इस प्रकार है –

कृषि उत्पादकता में वृद्धि –

हरित क्रान्ति को लाने का सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि देश में फसलों के अधीन क्षेत्रफल, कृषि उत्पादन तथा उत्पादकता में वृद्धि हो गयी। विशेषकर गेहूँ, बाजारा, धान, मक्का तथा ज्वार के उत्पादन में उम्मीद से ज्यादा वृद्धि हुई है जिसके परिणामस्वरूप खाद्यान्नों में भारत एक आत्मनिर्भर देश के रूप में जाना जाता है।

1950-51 में देश में खाद्यान्नों का कुल उत्पादन 5.09 करोड़ टन था जो क्रमशः बढ़कर 2009-10 में 21.82 करोड़ टन हो गया।

देश में 1960-61 में चावल का कुल उत्पादन 3.46 करोड़ टन था जो बढ़कर 2009-10 में 8.91 करोड़ टन हो गया।

इसी तरह गेहूँ का कुल उत्पादन 1960-61 में 1.1 करोड़ टन से बढ़कर 2009-10 में 8.07 करोड़ टन हो गया।

इसी तरह प्रति हेक्टेअर उत्पादकता में भी पर्याप्त सुधार हुआ है। वर्ष 1950-51 में खद्यान्नों का उत्पादन 522 किग्रा प्रति हेक्टेअर था जो बढ़कर 2009-10 में 1,798 किग्रा प्रति हेक्टेअर हो गया।

हाँ, भारत में खाद्यान्न उत्पादनों में कुछ उच्चावचन भी हुआ है जो बुरे मौसम आदि के कारण रहा जो यह सिद्ध करता है कि देश में कृषि उत्पादन अभी भी बहुत कुछ मौसम पर निर्भर करता है।

कृषि के स्वरूप में परितर्वन –

हरित क्रान्ति के फलस्वरूप खेती के परम्परागत स्वरूप में परिवर्तन हुआ है और खेती व्यवसायिक दृष्टि से की जाने लगी है जबकि पहले सिर्फ पेट भरने के लिए की जाती थी।

देश में गन्ना, रुई, पटसन, तिलहनों तथा बागवानी फसलों के उत्पादन में वृद्धि हुई है। कपास का उत्पादन 1906-61 में 5.6 मिलियन गांठ था जो बढ़कर 2009-10 में 23.9 मिलियन गांठ हो गया।

इसी तरह तिलहनों का उत्पादन 1960-61 में 7 मिलियन टन था जो बढ़कर 2009-10 में 24.9 मिलियन टन हो गया। इसी तरह, पटसन, गन्ना, आलू तथा मूंगफली आदि व्यावसायिक फसलों के उत्पादन में भी वृद्धि हुई हैं।

वर्तमान समय में देश में अब बागवानी फसलों-फलों सब्जियों तथा फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे ज्यादा से ज्यादा उत्पादन किया जा सके।

कृषि बचतों में वृद्धि –

उन्नतशील बीजों, रासायनिक खादों, उत्तम सिंचाई तथा मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बढ़ा है जिससे कृषकों के पास बचतों की मात्रा में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है जिसकों देश के विकास के काम में लाया जा सका है।

कृषि तथा उद्योग के सम्बन्धों में मजबूती –

कृषि की नई तकनीकें की मदद से हुए आधुनिकीकरण ने कृषि तथा उद्योग के परस्पर सम्बन्ध को और भी अधिक सुदृढ़ बना दिया है।

पारम्परिक रूप में यद्यपि कृषि और उद्योग का अग्रगामी सम्बन्ध (Forward linkage) पहले से ही प्रगाढ़ था क्योंकि कृषि क्षेत्र द्वारा उद्योगों के लिए अनेक आगत उपलब्ध कराए जाते हैं।

परन्तु इन दोनों में प्रतिगामी सम्बन्ध (backward linkage) बहुत ही कमजोर था क्योंकि उद्योग निर्मित वस्तुओं का कृषि में बहुत कम प्रयोग होता था परन्तु कृषि के आधुनिकीकरण के फलस्वरूप अब कृषि में उद्योग निर्मित उत्पादों (जैसे—कृषि यन्त्र एवं रासायनिक उर्वरक आदि) की मांग में भारी वृद्धि हुई है जिससे कृषि का अलग-अलग उद्योगों से संबंध मजबूत हुआ है।

इस तरह, हम देखते हैं कि हरित क्रान्ति के फलस्वरूप देश के कृषि आगतों एवं उत्पादन में पर्याप्त सुधार हुआ है। इसके फलस्वरूप कृषक, सरकार तथा जनता सभी में यह विश्वास करना संभव हो गया है कि भारत कृषि उत्पादन में केवल आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि निर्यातक भी बन सकता है।

हरित क्रान्ति की कमियाँ –

सीमित प्रभाव –

हरित क्रान्ति का प्रभाव कुछ विशेष फसलों तक ही सीमित रहा, हरित क्रान्ति कुछ फसलों जैसे, गेहूँ, ज्वार, बाजरा तक ही सीमित है अन्य फसलों पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। यहाँ तक कि चावल भी इससे बहुत ही कम प्रभावित हुआ है, व्यापारिक फसलें भी इससे अप्रभावित ही हैं।

पूँजीवादी कृषि को बढ़ावा –

अधिक उपजाऊ किस्म के बीज एक पूँजी गहन कार्यक्रम है जिसमें उर्वरकों, सिंचाई, कृषि यन्त्रों आदि आगतों पर भारी मात्रा में निवेश करना पड़ता है। भारी निवेश करना छोटे तथा मध्यम श्रेणी के किसानों की क्षमता से बाहर है।

इस तरह, हरित क्रान्ति से लाभ उन्हीं किसानों को हो रहा है जिनके पास निजी पम्पिंग सेट, टैक्टर, नलकूप तथा अन्य कृषि यन्त्र हैं। यह सुविधा देश के बड़े किसानों को ही उपलब्ध है। सामान्य किसान इन सुविधाओं से वंचित है।

फलतः कृषि क्रान्ति का प्रसरण प्रभाव (spread effect) कमजोर रहा है जिसके कारण भारतीय खेती का विकास कुछ सीमित आर्थिक घेरे में ही सिमट कर रह गया है।

अन्य शब्दों में, हरित क्रान्ति का लाभ बड़े किसान ही उठा रहे हैं, इस प्रकार इससे पूँजीवादी खेती को प्रोत्साहन मिल रहा है, Harit Kranti Kya Hai

संस्थागत सुधारों की आवश्कता पर बल नहीं-

नई विकास विधि में संस्थागत सुधारों की आवश्यकता की सर्वथा अवहेलना की गयी है।

संस्थागत परिवर्तनों के अन्तर्गत सबसे महत्त्वपूर्ण घटक भू-धारण की व्यवस्था है। इसकी सहायता से ही तकनीकी परिवर्तन द्वारा अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।

देश में भूमि सुधार कार्यक्रम सफल नहीं रहे हैं तथा लाखों कृषकों को आज भी भू-धारणा की निश्चितता नहीं प्रदान की जा सकी है।

भूमि सुधार के नाम पर बड़े पैमाने पर काश्तकारों को बेदखल किया गया है जिसके फलस्वरूप उन्हें विवश होकर फसल सह-भाजक बनना पड़ गया है।

इसी तरह उर्वरक के प्रयोग के विस्तार में काश्तकारी खेती ही एक प्रमुख बाधा है क्योंकि काश्तकारों की अपेक्षा भू-स्वामी हो उर्वरकों का अधिक मात्रा में उपयोग कर सकते हैं।

श्रम – विस्थापन की समस्या-

हरित क्रान्ति के अन्तर्गत प्रयुक्त कृषि यन्त्रीकरण के फलस्वरूप श्रम-विस्थापन को बढ़ावा मिला है। कृषि में प्रयुक्त यन्त्रीकरण से श्रमिकों की मांग पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

अतः भारत जैसी श्रम- अतिरेक वाली अर्थव्यवस्थाओं में यन्त्रीकरण बेरोजगारी की समस्या उत्पन्न कर सकता है।

ग्रामीण जनसंख्या का रोजगार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने का यह भी कारण है।

आय की बढ़ती असमानता –

कृषि में तकनीकी परितर्वनों का ग्रामीण क्षेत्रों में आय-वितरण पर विपरीत प्रभाव पड़ा है। डॉ. वी. के. आर. वी. राव के अनुसार, “यह बात अब सर्वविदित है कि तथाकथित हरित क्रान्ति जिसने देश में खाद्यान्नों का उत्पादन बढ़ाने में सहायता करने के साथ इसकी वजह से ग्रामीण आय में असमानता बढ़ी है।

बहुत से छोटे किसानों को अपने काश्तकारी अधिकार छोड़ने पड़े हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक और आर्थिक तनाव बढ़े हैं, जो इसकी कमी को दिखाता है।

क्षेत्रीय असन्तुलन –

इस योजना का प्रभाव उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, तमिलनाडु तथा महाराष्ट्र आदि राज्यों तक ही सीमित रहा है, इसका प्रभाव सम्पूर्ण देश पर न फैल पाने के कारण देश का सन्तुलित रूप से विकास नहीं हो पाया, इस तरह, हरित क्रान्ति सीमित रूप से ही सफल रही है।

योजना की सफलता के लिए सुझाव –

हरित क्रान्ति वैसे तो काफी सफल रही है, लेकिन इसकी कुछ कमियाँ है जो इसकी पूरी क्षमता से प्रयोग करने से रोकती है, इस योजना के लिए कुछ सुझाव निम्नलिखित है –

संस्थागत परिवर्तनों को प्रोत्साहन –

हरित क्रान्ति की सफलता के लिए भूमि सुधार कार्यक्रमों को प्रभावी और विस्तृत रूप से लागू किया जाना चाहिए। बंटाईदारों को स्वामित्व का अधिकार दिलाया जाना चाहिए।

सीमा निर्धारण से प्राप्त अतिरिक्त भूमि को भूमिहीन कृषकों में वितरित किया जाना चाहिए। चकबन्दी को प्रभावी बनाकर जोतों के विभाजन पर प्रभावी रोक लगायी जानी चाहिए।

रोजगार के अवसरों में वृद्धि –

कृषि में पूरी तरह से तकनीक पर न निर्भर होकर श्रम प्रधान तकनीकों को भी अपनाया जाना चाहिए तथा ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए कुटीर एवं ग्राम उद्योगों का भी विकास किया जाना आवश्यक है।

अन्य संरचनात्मक सुधारों का विस्तार कृषि के विकास के लिए आवश्यक बिजली, परिवहन – सहित अन्य संरचनात्मक सुविधाओं का विकास किया जाना चाहिए। तभी हरित क्रान्ति अन्य फसलों एवं क्षेत्रों तक फैल सकेगी।

हरित क्रान्ति का अन्य फसलों तक फैलाव –

हरित क्रान्ति कुछ ही फसलों तक सीमित है इसकी सफलता के लिए यह आवश्यक है कि इसका विस्तार चावल तथा अन्य फसलों की खेती तक किया जाय।

चावल के साथ दालें, कपास, गन्ना, तिलहन, जूट आदि व्यापारिक फसलों के सम्बन्ध में भी उत्पादन वृद्धि सन्तोषजनक नहीं रही है। अतः इन फसलों को भी हरित क्रान्ति के प्रभाव क्षेत्र में शामिल किया जाना चाहिए।

छोटे किसानों को एक करना –

छोटे खेतों तथा छोटे किसानों को भी हरित क्रान्ति से सम्बद्ध करना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि

(i) भूमि सुधार कार्यक्रमों को शीघ्रता और प्रभावी ढंग से लागू किया जाना चाहिए

(ii) छोटे-छोटे किसानों को उन्नत बीज, खाद आदि आवश्यक चीजों को खरीदने के लिए उदार शर्तों एवं दरों पर साख सुविधाएँ उपलब्ध करायी जानी चाहिए।

(iii) साधारण कृषि उपकरणों की खरीद के सम्बन्ध में दी गयी सुविधाओं के अतिरिक्त बड़ी-बड़ी फार्म मशीनरी यथा – ट्रैक्टर, हार्वेस्टर आदि को सरकार की ओर से किराए पर दिया दिया जाना चाहिए।

(iv) बहुत छोटी – छोटी जोतों वाले किसानों को सहकारी खेती के फायदे बताने और उसे अपनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए।

समन्वित फार्म नीति-

हरित क्रान्ति की सफलता के लिए समन्वित फार्म नीति अपनायी जानी चाहिए ताकि फार्म तकनीक व आगतों के मूल्यों के सम्बन्ध में एक उचित नीति अपनाई जा सके तथा कृषकों को उन्नतशील बीज, खाद, कीटनाशक तथा कृषि यन्त्र एवं उपकरण उचित मूल्य पर समय से उपलब्ध हो सकें।

इसके अतिरिक्त सरकार को समस्त कृषि उपजों की बिक्री का प्रबन्ध किया जाना चाहिए तथा उचित मूल्य पर कृषि उत्पादों को खरीदने की गारन्टी भी देनी चाहिए, ताकि किसान को कम से कम नुकसान उठाना पड़े।

भारत में हरित क्रांति के जनक कौन थे?

भारत में हरित क्रांति के जनक ‘एस. स्वामीनाथन’ है।

विश्व में हरित क्रांति के जनक कौन थे?

‘नॉर्मन बोरलॉग’ को विश्व में हरित क्रांति के जनक के रूप में जाना जाता है।

भारत में हरित क्रांति कब शुरू हुई?

भारत में हरित क्रांति की शुरुआत 1966 में हुई थी।

Summary –

निश्चित ही हरित क्रांति ने हमारे देश के अन्न उत्पादन में अभूतपूर्व परिवर्तन लाए है, योजना की कुछ न कुछ कमिया अवश्य होती है, उसी तरह इसकी भी कमियों को अगर दूर किया जाए तो और ज्यादा सफलता पाई जा सकती है।

Harit Kranti Kya Hai हरित क्रांति क्या है, इसके बारे में हमारा यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेंट बॉक्स में, अगर आपके पास इससे संबंधित कोई भी सवाल या सुझाव हो तो उसे भी लिखना न भूलें, धन्यवाद 🙂

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