Global Warming Kya Hai ग्लोबल वार्मिंग क्या है इसके प्रमुख कारण और उपाय

Global Warming Kya Hai, पिछले कुछ सालों में हमने जिस तेजी के साथ तरक्की की है, उस तेजी के साथ पर्यावरण में असंतुलन भी पैदा हुए है, जिसके कारण आज और आने वाले समय में धरती पर बहुत असामान्य परिस्थितियाँ देखने को मिल सकती है।

पहाड़ी इलाकों में बाढ़, सूखा और बिना मौसम के बारिश, ठंढे प्रदेशों में कम बर्फबारी जैसे कई गंभीर समस्याएं ग्लोबल वार्मिंग के कारण पैदा हो रही है।

ग्लोबल वार्मिंग क्या है? –

हैलो दोस्तों स्वागत है आपका इस लेख में आज हम ग्लोबल वार्मिंग के बारे में बात करने जा रहे है, ग्लोबल वार्मिंग क्या है Global Warming Kya Hai, इसके क्या कारण है और इसके क्या खतरे हो सकते है, साथ ही भविष्य में इससे बचने के लिए आज क्या कदम उठाये जाने चाहिए?

हमारी धरती को ऊष्मा के रूप में ऊर्जा सूर्य से मिलती है, यह ऊर्जा यहाँ रहने वाले सभी जीवधारियों के लिए जरूरी है।

धरती पर इंसानों के रहने के लिए एक सामान्य तापमान की आवश्यकता होती है, इससे अधिक या कम होने पर सम्पूर्ण जीवन चक्र पर प्रभाव पड़ता है।

global warming kya hai in hindi
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धरती पर सभी जगह एक जैसा तापमान नहीं रहता है, लेकिन वहाँ का तापमान जैसा है उसके हिसाब से पर्यावरण रहता है, जैसे ठंढे प्रदेशों में अलग वातावरण पाया जाता है और गरम जगहों पर अलग वातावरण पाया जाता है।

ग्लोबल वार्मिंग के कारण इन जगहों के तापमान में धीरे-धीरे वृद्धि हो रही है जिसके कारण पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो रहा है।

वायुमंडल में क्षोभमंडल सबसे नीचे पाया जाता है यह वायुमंडल का सबसे निचला स्तर है, यह पृथ्वी की सतह से 6 -11 मील की ऊंचाई तक चारों ओर फैला हुआ है, औसत वायु तापमान में वृद्धि की घटना का अधिकांश हिस्सा क्षोभमंडल में होता है।

अब पर्यावरण में पैदा हुआ यह असंतुलन अन्य समस्याओं को जन्म दे रहा है।

ठंढे प्रदेशों में ग्लेशियर पिघल रहे हैं और रेगिस्तान का विस्तार तेजी से हो रहा है, कहीं पर असामान्य बारिश हो रही है तो कहीं असमय ओले पड़ रहे हैं, कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं ज्यादा बारिश हो रही है।

पर्यावरण में हो रहे इस बदलाव ने पृथ्वी के जलवायु पैटर्न को बिगाड़ दिया है, ये घटनाएं पिछली एक या दो सदियों से देखी जा रही है, इसके बारे में वैज्ञानिकों ने रिसर्च करके इसके बारे में प्रासंगिक डेटा दिया है कि पृथ्वी के तापमान में लगातार वृद्धि हो रही है।

Global Warming Kya Hai Chart –

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साल दर साल वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को दिखाता चार्ट

ग्लोबल वार्मिंग के कारण –

वैसे तो ग्लोबल वार्मिंग के कई कारण हैं, जिनका हम सभी जीवधारियों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है, ये कारण प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों है।

मानव निर्मित कुछ ऐसे कारण जो कि ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि के लिए प्रमुख कारण है –

ग्रीन हाउस गैस –

हमारी धरती के ऊपर आकाश में वायुमंडल की कई सारी परतें है, इनमें सबसे ऊपर एक परत है जिसे ओज़ोन परत के नाम से जाना जाता है।

यह ओज़ोन की लेयर सूर्य की तरफ से आने वाली पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके धरती की ओर भेजती है।

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हमारे आसपास मौजूद वातावरण में, सीएफसी या क्लोरो फ्लोरो कार्बन या ग्रीन हाउस गैसों (कार्बन डाई ऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और वाष्प) की मात्रा बढ़ रही है, इन गैसों के कारण ओज़ोन की परत में छेद हो रहा है, जिसके कारण सूर्य से आने वाले खतरनाक पराबैंगनी किरणें सीधे ही धरती तक पहुँच जा रही है।

इन किरणों के संपर्क में आने से स्किन कैंसर, त्वचा से संबंधित बीमारियाँ और समस्याएं पैदा हो रही है।

ओज़ोन की परत ही सूरज और पृथ्वी के बीच एक कवच की तरह काम करता है धीरे-धीरे यह कवच हमारे ऊपर से खत्म हो रहा है।

वनों को काटना –

पौधे न सिर्फ ऑक्सीजन देते है बल्कि ये पर्यावरण से हानिकारक गैसों को भी सोखते है, आज के समय में व्यावसायिक और घरेलू उद्देश्यों के लिए वनों को को बहुत बड़ी संख्या में खत्म किया जा रहा है।

अगर केवल भारत में देखें तो हर साल एक बहुत बड़ी संख्या में जंगलों को काटकर खेती करने के लिए तैयार किया जाता है।

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पर्यावरण में असंतुलन के लिए वनों का काटा जाना एक प्रमुख कारण है, हालांकि इसे रोकने और नए वनों को स्थापित करने के लिए सरकार कई सारे पौधरोपण कार्यक्रम समय समय-समय पर चलाती है, लेकिन यह काटे जाने वाले पेड़ों की संख्या से काफी कम है।

वाहनों का उपयोग –

देखने में यह कम लग रहा होगा लेकिन वाहनों से निकलने वाला धुआँ भी एक बहुत बड़ा कारण है, वातावरण में बढ़ते असंतुलन का।

वाहनों में प्रयोग होने वाला पेट्रोल, डीजल् जीवाश्म ईंधन है, जो कि जलने के बाद बड़ी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य विषाक्त पदार्थ वातावरण में उत्सर्जित करते है।

आने वाले समय में यह इंडस्ट्री इलेक्ट्रिक पर शिफ्ट हो जाएगी लेकिन, फिर भी हमें आने वाले कुछ दशकों तक ऐसे वाहनों से निकलने वाले धुएं को कम करना होगा।

इसके अलावा एयर कंडीशनर और रेफ्रिजरेटर के उपयोग से, वातावरण में क्लोरो फ़्लोरो कार्बन वातावरण में इकट्ठा हो रही है, यही क्लोरो फ़्लोरो कार्बन पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे ऊपरी परत में मौजूद ओज़ोन की परत में छेद करने के लिए जिम्मेदार है।

औद्योगिकरण –

जैसे-जैसे हम विकास की तरफ जा रहे है, हमें औद्योगीकरण की तरफ जाना पड़ता है यह औद्योगीकरण नए नए उद्योगों को स्थापित किया जाता है।

उद्योगों से कई तरह के हानिकारक गैसें वातावरण में निकलती है, कुछ उद्योग तो वातावरण को इतना दूषित कर रहे है कि जहां पर ये स्थापित किये जाते है उसके कई किलोमीटर दूर तक भूमिगत जल, मिट्टी और वायु तीनों प्रदूषित हो जाते है।

और जैसे-जैसे हम औद्योगीकरण की तरफ जाते है हम पर्यावरण का उतना ही ज्यादा नुकसान करते जाते है, जिन देशों में अभी औद्योगीकरण प्रारंभ हुआ है, उन देशों के द्वारा आने वाले समय में ज्यादा पर्यावरण को नुकसान देखने को मिलेगा।

वर्ष 2013 में इंटरगवर्नमेंटल पैनल फॉर क्लाइमेट चेंज के द्वारा जारी किये गए डेटा के मुताबिक 1880 से 2012 के बीच वैश्विक तापमान में 0.9 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है।

औद्योगिकीकरण से पहले के औसत तापमान की तुलना में यह वृद्धि 1.1 डिग्री सेल्सियस है, जिसके खतरनाक प्रभाव हमें देखने को मिल रहे है।

कृषि –

भले ही यह सुनने में आश्चर्यजनक लग रहा हो लेकिन विभिन्न कृषि गतिविधियाँ कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन गैस का उत्पादन करती हैं, इनसे वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसें बढ़ती हैं और पृथ्वी का तापमान बढ़ने में मदद मिलती है।

चावल जैसी फसलों को अधिक पानी की जरूरत पड़ती है, जबकि भारत की स्थानीय फसलें जैसे बाजरा, अरहर, रागी, कुट्टू जैसी फसलें कम पानी में अच्छी पैदावार देती है, इनके स्थान पर उस भौगोलिक क्षेत्र में चावल की खेती वहाँ के भौगोलिक जलस्तर में कमी का एक बड़ा कारण बनती है।

अधिक जनसंख्या –

केवल इंसान ही नहीं बल्कि सभी जीवधारी संस के द्वारा कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते है, यह CO2 वातावरण में मिल जाती है।

बाद में अगर यह पेड़ों के द्वारा सोखकर फिर से ऑक्सीजन में नहीं परिवर्तित की गई तो वातावरण में तापमान को बढ़ाने का काम करती है।

प्राकृतिक कारण –

ग्लोबल वार्मिंग के कुछ कारण प्रकृति के द्वारा भी संभव है, ग्लोबल वार्मिंग के प्राकृतिक कारण कुछ इस प्रकार है –

ज्वालामुखी का फटना –

हमारी धरती अंदर से सूर्य से भी ज्यादा गर्म है और एक तरल लावा के रूप में पिघली हुई है, जब इस लावा को निकलने के लिए कमजोर ऊपरी सतह मिलती है तो यह उसे तोड़कर बाहर निकलता है।

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जब ज्वालामुखी का विस्फोट होता है तो, इस प्रकलरिया में बहुत बड़ी मात्रा में राख और धुआं वायुमंडल में जाते है।

ये धूल और राख सैकड़ों किलोमीटर तक फैलकर वातावरण को नुकसान तो पहुँचती है साथ ही धरती पर भी इसके हानिकारक प्रभाव देखने को मिलते है।

जलवाष्प –

जलवाष्प से तात्पर्य पानी की वास्प से है, पानी पर जब सूर्य की किरणें पड़ती है तो उससे जलवाष्प बनते है जो कि वायुमंडल में जमा हो जाते है।

लेकिन तापमान में वृद्धि के कारण यह वाष्प अधिक मात्रा में वाष्पित हो जाता है और वातावरण में ग्लोबल वार्मिंग का एक कारण बनता है।

पिघलता हुआ पर्माफ्रॉस्ट –

पर्माफ्रॉस्ट का मतलब एक ऐसी जमी हुई मिट्टी है जिसमें कई वर्षों से पर्यावरणीय गैसें फंसी हुई हैं।
और यह पर्माफ्रॉस्ट ग्लेशियरों में , पृथ्वी की सतह के नीचे मौजूद है, अधिक तापमान के कारण या धीरे-धीरे बर्फ के कम पड़ने के कारण जैसे ही पर्माफ्रॉस्ट पिघलता है, यह इन गैसों को वायुमंडल में छोड़ता है, जो कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान का एक कारण बनता है।

जंगल की आग –

जंगलों में लगने वाली आग एक बड़ी चिंता का विषय है, हालांकि यह प्राकृतिक और मानव निर्मित दोनों कारणों से हो सकती है।

जंगल में लगने वाली आग खासकर उन जगहों पर लगती है, जहां सूखा या गर्मी पड़ती है, गर्मी में गहने पेड़ आपस में रगड़ खाकर आग पकड़ लेते है और सुख मौसम होने के कारण यह आग तेजी से फैलती है।

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कुछ लोग अपने फायदे के लिए या कृषि के लिए भूमि बनाने के लिए जंगलों में आग लगा देते है, जिससे बड़ी मात्रा में जंगल खत्म हो जाते है।

अब इस आग से गैसें तो निकलती ही है साथ ही आने वाले समय में भी वहाँ की हानिकारक वायु को सोखने के लिए जंगल नहीं होंगे।

ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव –

तापमान में बढ़ोत्तरी –

1880 के बाद से पृथ्वी का तापमान ~1 डिग्री बढ़ गया है, इस तापमान के बढ़ने से ग्लेशियरों के पिघलने की दर में वृद्धि हुई है, ग्लेशियरों के पिघलने से समुद्र के तटीय क्षेत्रों आने वाले समय में पानी के अंदर डूब सकते है।

पारिस्थितिकी तंत्र –

बढ़त हुआ तापमान केवल धरती पर ही नहीं बल्कि पानी के अंदर भी जीवन तंत्र को प्रभावित करता है, ग्लोबल वार्मिंग ने मूंगा चट्टानों को प्रभावित किया है, ये मूंग चट्टानें कई प्रकार के जलीय जीवों का घर है, हर साल इनकी कमी पानी के अंदर से जीवों की संख्या में कमी का कारण बना रहा है।

असामान्य मौसम –

अगर भारत की बात करें तो पहल मौसम के हिसाब से ही सर्दी गर्मी और बरसात होती थी, लेकिन पिछले कुछ दशों में इसमें काफी ज्यादा बदलाव देखने को मिले है।

कुछ जगहों पर आवश्यकता से अधिक बारिश के कारण बाढ़ तो कहीं आवश्यकता से कम बारिश के कारण सूखा जैसी घटनाएं अब आम हो गई है।

ग्लोबल वार्मिंग से बाढ़, सुनामी और अन्य प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि के कारण, औसत मृत्यु दर आमतौर पर बढ़ जाती है।

इतना ही नहीं गर्मी और आर्द्रता के पैटर्न में असंतुलन हो जाता है, इससे मच्छरों की आवाजाही बढ़ जाती है जो बीमारियाँ फैलाते हैं, जिसका कारण हमें मौसमी बीमारियों से हर परिवार में लोग बीमार दिखाई पड़ते है।

ग्लोबल वार्मिंग से बचाव के उपाय –

वृक्षारोपण –

पेड़ पौधे हमारे जीवन का एक प्रमुख स्त्रोत है यदि हमें वातावरण से किसी भी तरह के प्रदूषण को खत्म करना है तो इसका सबसे सही और आसान उपाय है कि हम अधिक से अधिक पौधे लगाएं।

इससे न सिर्फ पर्यावरण शुद्ध होगा बल्कि बारिश के लिए भी यह लाभदायक है इसके साथ ही मिट्टी कि लिए भी बेहद जरूरी है।

जल संरक्षण –

बारिश का पानी यदि सीधे धरती में चला जाता है तो इससे जलस्तर में वृद्धि होती है, इस जल स्तर को बढ़ाने में शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों के लोग अपना योगदान दे सकते है।

ग्रामीण इलाकों में बड़े बड़े तालाब बनाकर बारिश के पानी को इकठ्ठा किया जा सकता है और फिर इस पानी से सिंचाई और जरूर के अन्य काम लगभग साल भर किये जा सकते है, ऐसा करने से भूभर्ग में मौजूद पानी का प्रयोग कम से कम होगा जिससे जलस्तर को बढ़ाने में मदद मिलती है।

शहरी इलाकों में घरों में कुछ ऐसी व्यवस्था की जा सकती है कि बारिश का पानी घर के अंदर जमीन के नीचे ही पानी की टंकी बनाकर स्टोर किया जा सकता है या फिर एक गड्ढा इस तरह बनाया जा सकता है कि आपके घर का सम्पूर्ण बारिश का पानी उस गड्ढे से होकर सीधे जमीन में चला जाए, इससे जलस्तर को सीधे तौर पर बढ़ाने में मदद मिलती है।

जैविक खेती –

परंपरागत रूप में भारत में जैविक खेती ही की जाती थी लेकिन पिछले कुछ दशकों में और खासकर फ़ार्मिंग रेवलूशन के बाद तो कीटनाशकों का प्रयोग काफी ज्यादा बाढ़ गया है।

आज हालत ऐसे है कि ऑर्गनीक रूप से उगाई गई सब्जियों के दाम ज्यादा होते है, कीटनाशक से उगाए गए सब्जियों की तुलना में।

इसलिए हम सबके स्वास्थ्य और अच्छे जीवन के लिए यह जरूरी है कि जैविक खेती की ओर जितना हो सकें जाएं, इससे हम न सिर्फ स्वास्थ्य का बल्कि पर्यावरण की भी हेल्प करते है।

इसके अलावा भी और भी कई सारी चीजें है जिनका यदि हम खुद ख्याल रखें तो एक बाद बदलाव ला सकते है, जैसे कम से कम डीजल, पेट्रोल वाले वाहनों का इस्तेमाल करना, बागवानी करना, अन्य लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करना इत्यादि।

Summary –

तो दोस्तों, आशा करता हूँ ग्लोबल वार्मिंग क्या है इसके बारे में आपको जानकारी समझ में आ गई होगी, यह जानकारी दूसरों के साथ भी शेयर करें ताकि अधिक से अधिक लोग जागरूक हो सकें, आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो उसे कमेंट बॉक्स में जरूर लिखें, धन्यवाद !

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