गॉड पार्टिकल क्या है God Particle Kya Hai, इसका प्रयोग और महत्व

God Particle Kya Hai, वैसे अगर देखा जाए तो ये धरती हमें बहुत शांत दिखाई देती है, आज के समय में हम इंसानों ने विज्ञान के क्षेत्र में बहुत तरक्की कर ली है, लेकिन हमें ये नहीं पता कि इस धरती के निर्माण कैसे हुआ था, उस समय क्या परिस्थितियाँ हमारी पृथ्वी पर थी।

इसी चीज का पता लगाने के लिए वैज्ञानिक सालों से रिसर्च कर रहे है और एक ऐसे कण के बारे में जानकारी जुटाने का प्रयास कर रहे है, जिसकी मदद से इन सवालों के जवाब को ढूंढा जा सकता है और वह कण है “गॉड पार्टिकल”

Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है “गॉड पार्टिकल” के बारे में God Particle Kya Hai? इसका निर्माण कैसे हुआ? यह कैसे पृथ्वी के रहस्यों को सुलझाने में मदद कर सकता है, जानेंगे इन सारी चीजों के बारे में उम्मीद करता हूँ आपको यह पसंद आएगा।

गॉड पार्टिकल क्या है? –

आज जो हम अपने आसपास के वातावरण में पेड़-पौधे, तमाम तरह के जीव जन्तु और आसमन में सूरज, चांद तारे दिख रहे है।

लगभग 12-14 अरब साल पहले पूरा ब्रह्मांड एक बिन्दु के रूप में सिमटा हुआ था, इसी दौरान एक घटना घटी जिसे बिग बैंग थ्योरी के नाम से जाना जाता है।

इसके बाद इस बिन्दु का फैलाव हुआ और आज हम धरती के रूप में एक ग्रह, सूरज, चंद और तारे को देखते है।

ये सब तो आज वैज्ञानिकों ने यह अनुमान लगाया है, लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि दुनिया में जब कुछ मौजूद ही नहीं था, इतनी सारी चीजें अस्तित्व में कैसे आईं।

इन्हीं सवालों का जवाब, हम बिग-बैंग और “हिग्स बोसन” यानी “गॉड पार्टिकल” के जरिए जानने की कोशिश करेंगे, कि कैसे एक जगह सिमटी हुई एक इकाई से हमारी यह दुनिया अस्तित्व में आई।

god particle kya hai in hindi
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God Particle Kya Hai –

वर्ष 1927 में वैज्ञानिक “जॉर्जिस लेमाइटर” ने ‘बिग बैंग’ के सिद्धांत को सबके सामने रखा, इसके बाद साल 1929 में ऐडविन हबल नाम के वैज्ञानिक ने इस सिद्धांत का विश्लेषण और अध्ययन किया।

इसके बाद में वैज्ञानिक “स्टीफन हॉकिंग” ने इस सिद्धांत को दुनिया के सामने लाया कि करीब 15 अरब साल पहले पूरा ब्रह्मांड एक बिंदु के रूप में सिमटा हुआ था।

जब जिस सौरमंडल को देखते है, उसमें मौजूद सारी चीजें, मात्र एक गेंद (बिन्दु) के रूप में सिमटी हुई थी, फिर अचानक से एक घटना हुई और उस बिन्दु के सारे कण चारों तरफ फैल गए, कणों के इसी फैलाव को “बिग बैंग” के नाम से जाना जाता है।

आज भी हमारा जो ब्रह्मांड है उसका फैलाव जारी है, हर सेकंड यह करोड़ों किलोमीटर फैल रहा है।

लगभग 14 अरब साल पहले जब “बिग बैंग” की घटना के बाद पदार्थ के शुरुआती कणों ने जन्म लिया तो उन कणों का गुण-धर्म तय करने वाले कई दूसरे अनजाने कण भी अस्तित्व में आये, जैसे – सिंगल टॉप क्वार्क और हिग्स बोसॉन।

फिजिक्स के सिद्धांत के अनुसार, “बिग बैंग” की घटना के बाद “हिग्स बोसॉन” की मौजूदगी ने ही पदार्थ के कणों में वजन पैदा किया।

लेकिन हिग्स बोसॉन इस कदर रहस्यमय हैं कि वैज्ञानिकों ने उन्हें “गॉड पार्टिकल” यानी “ईश्वरीय कणों” का नाम दिया है।

भौतिकी के नियमों के अनुसार ब्रह्मांड की रचना “ईश्वरीय कणों” के बिना मुमकिन नहीं थी।

क्योंकि इसने ही अलग-अलग परमाणुओं को आपस में जोड़कर नए पदार्थों के अनगिनत अणुओं को जन्म दिया और इन नए अणुओं के आपस में जुड़कर अलग-अलग नए पदार्थों का निर्माण हुआ।

गॉड पार्टिकल (हिग्स बोसोन) –

हम जो भी अपने आसपास चीजें देखते है, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु, नदी-पहाड़, ये धरती और सबकुछ का निर्माण कणों से मिलकर हुआ है।

इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड में सभी चीजें ऐटम से मिलकर बनी हैं, एक ऐटम इलेक्ट्रॉन, न्यूट्रॉन और प्रोटॉन नाम के तीन कणों से बना होता है।

ये कण भी अपने से छोटे सबऐटॉमिक पार्टिकल से मिलकर बने होते हैं जिनको “क्वार्क” कहा जाता है और इन्हीं कणों का द्रव्यमान अब तक रहस्य बना हुआ है।

अभी तक ये पता चला है कि प्रोटॉन और न्यूट्रॉन जैसे कणों में द्रव्यमान यानी वजन होता है जबकि फोटॉन में नहीं होता है।

वैज्ञानिकों के लिए यह रहस्य ही है, थी कि आखिर कुछ कणों में वजन होता है जबकि कुछ में नहीं, इसके पीछे क्या कारण है।

इसी सवाल का जवाब ढूँढने के लिए “पीटर हिग्स” और पांच अन्य वैज्ञानिकों ने साल 2012 में सुलझाने की कोशिश की।

और इसका बाद “हिग्स बोसॉन” का सिद्धांत दिया, इस रिसर्च के अनुसार बिग-बैंग की घटना के तुरंत बाद किसी भी कण में कोई वजन नहीं था।

जब ब्रह्मांड ठंडा हुआ और तापमान एक निश्चित सीमा के नीचे गिरता चला गया तो शक्ति की एक फील्ड पूरे ब्रह्मांड में बनती चली गई।

इस फील्ड के अंदर मौजूद बल को हिग्स फील्ड के नाम से जाना गया, उन फील्ड्स के बीच कुछ कण थे जिनको वैज्ञानिक “पीटर हिग्स” के सम्मान में “हिग्स बोसोन” के नाम से जाना गया।

इसी “हिग्स बोसॉन” को, गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है, पीटर हिग्स के उस सिद्धांत के मुताबिक, जब कोई कण “हिग्स फील्ड” के प्रभाव में आता है तो “हिग्स बोसोन” के माध्यम से उस कण में वजन आ जाता है।

इस फील्ड के अंदर जो कण सबसे ज्यादा प्रभाव में आता है, उसमें सबसे ज्यादा वजन होता है और जो प्रभाव में नहीं आता है, उसमें वजन नहीं होता है।

उस समय तक वैज्ञानिकों का सिर्फ यह अनुमान था कि हिग्स बोसोन नाम का कण ब्रह्मांड में मौजूद है, लेकिन जुलाई 2012 में स्विटजरलैंड में वैज्ञानिकों ने रिसर्च के दौरान हिग्स कण के खोजने की घोषणा की।

गॉड पार्टिकल (हिग्स बोसोन) क्यों महत्वपूर्ण है? –

हमारी धरती के निर्माण में द्रव्यमान का खास महत्व है, भार या द्रव्यमान वह चीज है जिसको किसी चीज के अंदर रखा जा सकता है।

अगर कोई चीज खाली रहेगी तो उसके परमाणु अंदर में घूमते रहेंगे और आपस में नहीं जुड़ेंगे।

परमाणुओं के आपस में न जुडने से कोई चीज नहीं बनेगी, भर के कारण ही कण, एक-दूसरे से जुड़ते जाते है और नई-नई चीजों का निर्माण होता है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इन्हीं कणों के आपस में जुडने की वजह से हमारे सौरमंडल, आकाशगंगा और धरती, चाँद, तारे का निर्माण संभव हुआ।

यदि कण आपस में नहीं मिलते तो इन चीजों का कोई भी अस्तित्व नहीं होता और कणों को आपस में मिलाने के लिए भार यानि द्रव्यमान का होना जरूरी है।

गॉड पार्टिकल की खोज –

इस मत्वपूर्ण कण के बारे में खोज करने के लिए वैज्ञानिकों क द्वारा, “यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन” (सर्न/CERN) की एक महत्वाकांक्षी परियोजना को स्टार्ट किया गया।

इस प्रोजेक्ट में प्रयोग होने वाली मशीन का नाम “लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर” “वृहद हैड्रॉन संघट्टक” (अंग्रेज़ी: Large Hadron Collider; संक्षेप में LHC) है।

इसे महामशीन भी कहा जाता है, क्योंकि यह अबतक इंसानों द्वारा बनाई गई सबसे बड़ी मशीन है, इसका निर्माण 1998 से लेकर 2008 के बीच में किया गया।

God Particle Kya Hai
लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर (महामशीन) | God Particle Kya Hai

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इस “लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर” को, जेनेवा के समीप फ़्रान्स और स्विट्ज़रलैण्ड की सीमा पर भूमि की सतह से लगभग 100 मीटर नीचे स्थापित किया गया। 

27 किलोमीटर वृत्ताकार सुरंग के रूप में, 100 मीटर नीचे बने इस सुरंग में त्वरक (Accelerator) के चुम्बक, संसूचक (डिटेक्टर), बीम-लाइनें एवं अन्य उपकरण लगाए गए है।

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वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि प्रोटोन जैसे चार्ज्ड पार्टिकल्स को भारी ऊर्जा के साथ टकराया जाए तो इनके टाकराने से हिग्स फिल्ड में हलचल पैदा होगी और इसके हलचल से “गॉड पार्टिकल” जन्म लेगा।

इस महामशीन को पहली बार शुरू करते हुए, वर्ष 2012 में मशीन के अंदर में प्रोटोन के पार्टिकल्स को प्रकाश की 99.99 प्रतिशत गति के साथ टकराया गया, इस टक्कर में जबरदस्त मात्रा में ऊर्जा निकली।

प्रयोग सफल रहा और वैज्ञानिकों को पहली बार हिग्स बोसोन के बारे में पता चला, भारी भरकम बजट वाले इस एक्सपेरिमेंट ने हिग्स फील्ड के सिद्धांत को प्रमाणित कर दिया।

इस हिग्स फील्ड के सिद्धांत को साल 1964 में वैज्ञानिक “पीटर हिग्स” ने दिया था (इनके बारे में हमने ऊपर चर्चा की है)

उनकी इस थ्योरी के सही साबित होने के बाद साल 2013 में “पीटर हिग्स” को भौतिकीशास्त्र के “नोबेल पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।

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हिग्स बोसान की उत्पत्ति को दर्शाती हुई, एक सिमुलेट की गयी घटना (god particle in hindi)

यूं नाम पड़ा गॉड पार्टिकल –

यूएस के मशहूर वैज्ञानिक “लेऑन लीडरमैन” ने 1993 में, कणों के द्रव्यमान और परमाणु के बनने की प्रक्रिया के बारे में एक पुस्तक लिखी थी, जिसका शीर्षक था “The Goddamn Particle”

जब इस किताब को छपने की बारी आई तो, इसके प्रकाशक को इसका नाम नहीं पसंद आया।

इसके बाद इसका नाम “The God Particle” कर दिया, लेकिन यह कण का भगवान से संबंधित नहीं है।

अंग्रेजी में Goddamn को गुस्सा या चिड़चिड़ाहट व्यक्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

इसी चीज को ध्यान में रखते हुए वैज्ञानिक “लीडरमैन” ने, Goddamn का इस्तेमाल किया, वे यह दिखा सके कि इस कण को खोजने में कितनी परेशानी का सामना करना पड़ा।

(Note- इस जवाब का प्रयोग यूपीएससी के प्री इंटरव्यू के दौरान, कैंडीडेट ने किया था)

लेकिन इसका एक दूसरा किस्सा भी प्रचलित है कि, “हिग्स बोसॉन” को “गॉड पार्टिकल” के रूप में नामकरण, नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी भौतिक विज्ञानी लियोन लेदरमैन ने दी थी।

क्योंकि गॉड या भगवान सर्वव्यापी और सर्वत्र है, वैज्ञानिक अक्सर ‘गॉड’ शब्द का प्रयोग तब करते हैं जब उन्हें लगता है कि किन्हीं धर्मों द्वारा बताए गए लक्षणों में से कोई एक दैवीय लक्षण उनके द्वारा पाए गए निष्कर्षों से मेल खाता है। (यह जवाब न्यूज वेबसाईट ‘आजतक’ से लिया गया है।)

गॉड पार्टिकल की खोज क्यों जरूरी है? –

अगर साधारण तौर पर यह देखा जाए तो किसी को भी लगेगा कि यह यूं ही किया जा रहा है, जिसकी कोई जरूरत नहीं है।

लेकिन ऐसा नहीं है, दरअसल वैज्ञानिक कुछ ऐसे सवालों के जवाब तलाश कर रहे है, जो कि हम इंसानों के लिए बहुत जरूरी है, जिसके बाद ही विज्ञान के बहुत से नियमों की पुष्टि की जा सकेगी, जिसके कई फायदे है –

1. इसके बारे में पता चलने पर सबसे पहला फायदा यह होगा कि वैज्ञानिकों का दशकों पुराना असमंजस खत्म हो जाएगा, कि किसी चीज को द्रव्यमान कैसे मिलता है।

2. धरती के अंदर जो ज्वालामुखी धधक रहे है उनको ऊर्जा कैसे मिलती है।

3. यदि गॉड पार्टिकल के मिलने का दावा सही साबित होता है, तो यह साबित हो जायेगा कि हमारा भौतिक विज्ञान सही दिशा में काम कर रहा है।

अगर यह साबित हो जात है कि भौतिक विज्ञान सही दिशा में काम कर रहा है तो इससे भौतिकी के स्टैंडर्ड मॉडल की भी पुष्टि हो जायेगी।

4. गॉड पार्टिकल के मिलने के बाद यह भी साबित हो जायेगा कि हर चीज ठोस क्यों होती है।

यदि हिग्स बोसोन यानी गॉड पार्टिकल का पता नहीं चलता तो भौतिकी का स्टैंडर्ड मॉडल फेल हो जाता और हर चीज के ठोस होने की वजहों का भी पता नहीं चल पाता।

और यह विज्ञान के लिए यह बड़ा झटका होता और तब गणित पर भी सवाल उठने लगता, जिसकी आंच बाकी के क्षेत्रों पर भी पड़ती।

5. हिग्स बोसॉन न सिर्फ हमारे नियमों के अस्तित्व को सही साबित करने के लिए जरूरी है, बल्कि इससे हमें यह भी पता चल सकेगा कि आखिर हमारी धरती और इस सौरमंडल की शुरुआत कैसे हुई।

6. “गॉड पार्टिकल” के मिलने के बाद इस रहस्य से पर्दा हटाया जा सकेगा कि किसी चीज को आकार और द्रव्यमान कैसे मिलता है।

“गॉड पार्टिकल” की खोज में भारत का योगदान –

इस महत्वपूर्ण खोज में भारत ने भी अपना योगदान दिया, “हिग्स बोसॉन” पार्टिकल का नाम दो वैज्ञानिकों के नाम पर पड़ा है।

पहले वैज्ञानिक है “पीटर हिग्स” और दूसरे भारत के महान वैज्ञानिक “सत्येंद्र नाथ बोस” का नाम है।

“सत्येंद्र नाथ बोस” ने युवावस्था के दौरान गर्म गैसों के बर्ताव के उपलब्ध आंकड़ों में कई तरह की त्रुटियां पाईं और इसको लेकर बोस ने कई नए तर्क दिए।

Satyendra Nath Bose
Satyendra Nath Bose

वैज्ञानिक बोस ने जब अपने शोध को अल्बर्ट आइंस्टीन के पास भेजा, तो उन्होंने इसे जर्मन में अनुवाद करके इस पर अपनी स्वीकृती दे दी

आइंस्टीन द्वारा मुहर लगने के बाद इस रिसर्च को दुनिया भर में “बोस आइंस्टीन स्टैटिक्स” के नाम से लोकप्रियता मिली। 

वहीं रिसर्च में जिन कणों का उल्लेख किया गया था, उसे बोसोन का नाम दिया गया, हिग्स फील्ड में वैज्ञानिकों ने जिस “हिग्स बोसोन” की खोज की है। वह भी बोसॉन श्रृंखला का ही कण है।

इसके अलावा इस प्रयोग में 6,000 से भी ज्यादा वैज्ञानिक दुनिया के अलग-अलग देशों से सालों तक अपना अथक प्रयास किया जिसके वजह से ही यह आज संभव हो पाया है।

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गॉड पार्टिकल किससे बना होता है?

वैज्ञानिकों के अनुसार शुरुआत में ब्रह्मांड एक बिन्दु के रूप में था, “बिग-बैंग” की घटना के बाद यह फैलना शुरू हुआ और जब ब्रह्मांड ठंडा हुआ और तापमान एक निश्चित सीमा के नीचे गिरता चला गया तो शक्ति की एक फील्ड पूरे ब्रह्मांड में बनती चली गई।

इस फील्ड के अंदर मौजूद बल को हिग्स फील्ड के नाम से जाना गया, उन फील्ड्स के बीच कुछ कण थे जिनको वैज्ञानिक “पीटर हिग्स” के सम्मान में “हिग्स बोसोन” के नाम से जाना गया, इसी “हिग्स बोसॉन” को, गॉड पार्टिकल भी कहा जाता है।

गॉड पार्टिकल का यह नाम कैसे पड़ा?

“हिग्स बोसॉन” को “गॉड पार्टिकल” के रूप में नामकरण, नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी भौतिक विज्ञानी लियोन लेदरमैन ने दी थी क्योंकि यह सर्वव्यापी और सर्वत्र है, वैज्ञानिक अक्सर ‘गॉड’ शब्द का प्रयोग तब करते हैं जब उन्हें लगता है कि किन्हीं धर्मों द्वारा बताए गए लक्षणों में से कोई एक दैवीय लक्षण उनके द्वारा पाए गए निष्कर्षों से मेल खाता है।

“हिग्स बोसॉन” की खोज कैसे हुई?

हिग्स बोसॉन की कल्पना, सर्वप्रथम वैज्ञानिक “पीटर हिग्स” ने दी थी, उनके इसी सिद्धांत को परिभाषित करने के लिए मानव इतिहास में सबसे बड़ी मशीन और खर्चे के साथ प्रयोग किया गया, प्रयोग के दौरान वैज्ञानिकों ने “गॉड पार्टिकल” के कणों के होने कि पुष्टि की।

“गॉड पार्टिकल” का क्या महत्व है?

गॉड पार्टिकल से पहले हमें यह कन्फर्म नहीं था कि हम जिस विज्ञान के सहारे इतनी तरक्की कर रहे है वो सही है भी या नहीं, इसके न पता चलने पर विज्ञान के लगभग सभी क्षेत्रों में नियमों और सिद्धांतों के सही होने पर सवाल उठते।

Summary –

जुलाई 2012 में इस प्रयोग के बाद, इस महाप्रयोग के प्रवक्ता “फाबियोला गियानोती” ने अपने अभिभाषण के अंत में कहा, “शुक्रिया कुदरत का” ।

ये केवल एक शब्द नहीं थे, विज्ञान के इतिहास में सबसे महंगी और सबसे लंबी मानी जाने वाली तलाश के अंत की शुरुआत में सामूहिक राहत की एक आवाज थी।

जहां पर यह प्रयोग हुआ, यही वह जगह है जहां इंटरनेट समेत ढेरों अन्य चीजों की खोज हुई थी, यहीं आज विज्ञान के इतिहास में एक और महान खोज संभव हो सकी है, जो हमारे मन में आने पर एक सुखद एहसास देता है।

जैसे-जैसे हम इंसान विज्ञान के रहस्यों को सुलझाते जा रहे है, इसके पीछे की सच्चाई जानकार, हमें बहुत हैरानी होती है।

आखिर कहां से हम इंसान आए है ये धरती कब तक हमें आशियाना देगी, जैसे बहुत से सवाल मन में आते रहते है।

इस ब्रह्मांड में एक चीज अटल है तो वह है “अंत” चाहे कोई भी चीज हो एक न एक दिन उसका अंत होना ही है, उम्मीद है कि जब तक हमारी धरती रहने के लायक न रहे, हम किसी और ग्रह की तलाश कर लें।

और इन सब चीजों के संभव होने के लिए खगोल विज्ञान में, इस तरह की खोज का लगातार होना जरूरी है।

तो दोस्तों, गॉड पार्टिकल क्या है? (God Particle Kya Hai) इसके बारे में यह आर्टिकल आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेन्ट बॉक्स के माध्यम से, यदि आपके पास इस विषय से जुड़ा कोई भी सवाल या सुझाव है, तो उसे भी जरूर लिखें, धन्यवाद 🙂

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