उदारीकरण क्या है Udarikaran Kya Hai इसका प्रभाव और फायदे

Udarikaran Kya Hai, आज हम अपने आसपास जो भी ब्रांडस देखते है, उनमें से कुछ भारत के बाहर से हमारे देश में काम कर रहे है और ऐसा लगभग हर इंडस्ट्री में ऐसा देखने को मिलता है।

किसी विदेशी ब्रांड के हमारे यहाँ काम करने से न सिर्फ हमें उस क्षेत्र में एक नया एक्सपोजर मिलता है बल्कि चीजों को सीखने के और रोजगार के नए मौके मिलते है।

उदारीकरण के पहले भारत में सभी छोटी बड़ी कंपनियां सरकारी हुआ करती थी, भारतीय अर्थव्यवस्था में एक समय ऐसा आया जब आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए कानून ही देश की वृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा बन गए।

Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है उदारीकरण के बारे में Udarikaran Kya Hai, क्यों इसे लाया गया और इसके क्या नुकसान है, जानेंगे इन सारी चीजों के बारे में।

Udarikaran Kya Hai? –

Udarikaran Kya Hai, उदारीकरण का अर्थ है ‘बाज़ार को मुक्त करना’ अर्थात उसपर से अनावश्यक सरकारी नियन्त्रण को कम करना, अंग्रेजी में इसे “Liberalisation” कहा जाता है।

उदारीकरण एक नई आर्थिक नीति है, जिसके द्वारा देश में ऐसा आर्थिक वातावरण स्थापित करने का प्रयास किया गया, जिससे देश के व्यवसाय व उद्योग स्वतंत्र रूप से विकसित हो सके।

उदारीकरण का प्रमुख उद्देश्य व्यवसाय व उद्योगों पर लगाए गए प्रतिबंधों को कम करना जिससे व्यवसायी तथा उद्यमियों को व्यापार करने में किसी प्रकार की बाधाओं का सामना न् करना पड़े।

Udarikaran Kya Hai
Udarikaran Kya Hai

जुलाई, वर्ष 1991 में भारत सरकार के द्वारा नए आर्थिक सुधारों की घोषणा की गई इसे नई आर्थिक नीति (New Economic Policy) या आमतौर पर “LPG” के रूप में भी जाना जाता है।

यहां पर “L” का अर्थ लिबरलाइजेशन जिसका अर्थ होता है उदारीकरण, “P” का अर्थ प्राइवेटाइजेशन जिसका अर्थ होता है निजीकरण और “G” का अर्थ ग्लोबलाइजेशन जिसका अर्थ वैश्वीकरण या भूमंडलीकरण होता है।

यह दिन भारत में एक नए आर्थिक युग की शुरुआत का है इस बदलाव का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक समृद्धि को प्राप्त करना एवं देश की अर्थव्यवस्था की बुनियादी समस्याओं को दूर करते हुए भारत के विकास को प्राप्त करना था।

भारतीय अर्थव्यवस्था में कोटा- परमिट राज का एक ऐसा भी दौर आया जब आर्थिक गतिविधियों के नियमन के लिए बनाए गए कानून ही देश की वृद्धि और विकास के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा के रूप में सामने आए।

इस समय किसी भी प्रकार की व्यावसायिक गतिविधि के लिए औद्योगिक अनुज्ञप्ति (लाइसेंस) लेना अनिवार्य था।

इस समय किसी भी तरह का लाइसेंस लेने के बहुत लंबी और जटिल प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता था, लाल -फीताशाही को बढ़ावा देने का कार्य करती थी और भ्रष्टाचार को भी बढ़ाने का कार्य करती थी।

उदारीकरण की प्रक्रिया इन्हीं जटिलताओं व प्रतिबंधों को दूर कर अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को ‘मुक्त’ करने की एक कोशिश की गई।

उदारीकरण के उद्देश्य –

उदारीकरण के उद्देश्य -पुराने समय के साथ बनाए गए कानूनों के साथ ऐसा होने लगा कि एक समय ऐसा भी आया जब आम लोगों के फायदे या हित के लिए बनाए गए कानून की भ्रष्टाचार की जड़ बनने लगे, जिसके कारण इसमें कुछ बदलाव किया जाना आवश्यक हो गया, बाद में उदारीकरण उसी बदलाव के रूप में जाना जाता है।

वस्तुओं और सेवाओं के आवागमन पर लगी रोक को हटाना।

लाइसेन्स प्रणाली को न्यूनतम तथा सरल बनाना।

नवीन उद्योगों की स्थापना की स्वतंत्रता देना।

इन्स्पेक्टर राज को लगभग समाप्त करना

आयात नीति को सरल बनाना।

उत्पादों के वितरण पर लगी रोक को हटाना।

उदारीकरण का प्रभाव –

उदारीकरण के फलस्वरूप घरेलू उद्योगों के बीच प्रतिस्पर्धा बढ़ी और इस कारण से आर्थिक विकास को सुनिश्चित किया गया।

अन्य देशों के साथ विदेशी व्यापार को बढ़ावा देने के साथ नियमित आयात और निर्यात को प्रोत्साहित किया।

टेक्नॉलजी आयात मे वृद्धि –

उदारीकरण नीति के अंतर्गत उच्चतम प्राथमिकता वाले उद्योगों को विदेशों से टेक्नॉलजी का आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं है।

उद्योगों के विस्तार की स्वतंत्रता –

उदारीकरण की नीति के अंतर्गत विद्यमान उद्योगों को विस्तार के लिए सरकार से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

लघु उद्योगों की निवेश सीमा में वृद्धि –

लघु उद्योगों की निवेश सीमा 1 करोड़ कर दी गई है तथा अति लघु उद्योगों की निवेश सीमा बढ़ाकर 25 लाख कर दी गई है।

वित्तीय क्षेत्र में सुधार –

भारत में वित्तीय क्षेत्र के नियमन का दायित्व भारतीय रिजर्व बैंक(RBI) का है, उदारीकरण के फलस्वरूप यह निर्णय लिया गया कि रिजर्व बैंक को इस क्षेत्र का का केवल नियंत्रक न बना कर एक सहायक की भूमिका में रखा जाए।

अर्थात की वित्तीय संस्थान कुछ क्षेत्रों में रिजर्व बैंक से सलाह किए बिना ही कई मामलों में अपने निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हो जाएं।

इन वित्तीय क्षेत्र में बैंक, स्टॉक एक्सचेंज, व्यावसायिक और निवेश तथा विदेशी मुद्रा बाज़ार जैसी वित्तीय संस्थाएँ शामिल है।

कुछ निश्चित शर्तों को पूरा करनेवाले बैंक अब रिज़र्व बैंक की अनुमति के बिना ही नई शाखाएँ खोल सकते हैं, सुधार नीतियों के तहत बैंकों की पूँजी में विदेशी भागीदारी की सीमा 74 प्रतिशत कर दी गई।

हालांकि बैंकों को अब देश-विदेश से और अधिक संसाधन जुटाने की भी अनुमति है पर खाता धारकों और देश के हितों की रक्षा के उद्देश्य से कुछ नियंत्रक शक्ति अभी भी रिजर्व बैंक के अपने पास सुरक्षित रखता है।

व्यापारी बैंक, विदेशी निवेश संस्थाओं (F.I.I) तथा म्युचुअल फंड और पेंशन कोष आदि को भी अब भारतीय वित्तीय बाजारों में निवेश की अनुमति प्रदान की गई है

पूंजीगत माल के आयात की स्वतंत्रता –

उदारीकरण नीति के अंतर्गत विद्यमान उद्योगों को विदेशों से पूंजीगत माल आयात करने के लिए सरकार से अनुमति लेने की कोई आवश्यकता नहीं है।

टैक्स सिस्टम में सुधार –

उदारीकरण नीति के तहत 1991 के बाद से व्यक्तिगत आय पर लगाए गए करों में निरंतर रियायतें दी गई है ताकि दरों को कम करके टैक्स चोरी से होने वाले नुकसान से बचा जाए।

उदारीकरण में किए गए इन बदलावों का संबंध राजकोषीय नीतियों से है जिसके अंतर्गत सरकार की कराधान शक्ति और सार्वजनिक व्यय नीतियां इत्यादि आती हैं

इसके पीछे यह तर्क दिया जाता है कि कम टैक्स रेट होने से बचत को बढ़ाने में बढ़ावा मिलता है, जिससे अधिक से अधिक लोग ईमानदारी से अपनी आय का विवरण देते है और इनकम टैक्स चुकाते है।

इसके अलावा निगम कर जो कि कंपनियों के द्वारा चुकाया जाता है, इसमें भी कमी की गई जिससे कि टैक्स चोरी को रोका जा सके।

विदेशी विनिमय सुधार –

1991 में भुगतान संतुलन की समस्या के तत्कालिक समाधान के लिए, विदेशी विनिमय क्षेत्र में सुधार के अंतर्गत अन्य देशों की और मुद्रा की तुलना में रुपये का अवमूल्यन किया गया।

इससे देश में निर्यात को बढ़ावा मिलने के साथ विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोत्तरी हुई, जिसकी वजह से व्यापार संतुलन भी बनाने में मदद मिली।

औद्योगिक क्षेत्र का विनियमीकरण –

साल 1991 के सुधारों से पहले देश में कोटा-परमिट राज व्यवस्था लागू थी, कोई भी नया बिजनेस स्टार्ट करने या प्रोडक्शन की मात्रा को निर्धारित करने के लिए भी लाइसेंस या किसी न किसी सरकारी अनुमति की आवश्यकता पड़ती थी।

अनेक क्षेत्रों में बिजनेस करने के लिए मनाही थी, उसे केवल सार्वजनिक क्षेत्र के लिए ही आरक्षित रखा गया था, इन क्षेत्रों में प्राइवेट बिजनेसमैन को प्रवेश करना मना था।

यदि किसी क्षेत्र में प्राइवेट क्षेत्र में बिजनेस करने की अनुमति थी भी तो, उत्पादों की कीमतों के निर्धारण तथा वितरण के बारे में भी अनेक नियंत्रण लगाए गए थे।

1991 की उदारीकरण नीति के माध्यम से निम्नलिखित 6 उत्पाद श्रेणियों को छोड़ अन्य सभी उद्योगों के लिए लाइसेंसिंग व्यवस्था को समाप्त कर दिया, जिससे कोई भी व्यक्ति कहीं से भी अपना बिजनेस स्टार्ट कर सकता है, लेकिन इन बिजनेस में काम करने के लिए लाइसेंस की आवश्यकता पड़ेगी –

एल्कोहल,
सिगरेट,
जोखिम भरे रसायन व औद्योगिक विस्फोटक,
इलेक्ट्रॉनिक
विमानन तथा दवाइयां

अब सार्वजनिक क्षेत्र के लिए सुरक्षित उद्योगों में भी केवल कुछ मुख्य गतिविधियाँ, जैसे – परमाणु ऊर्जा उत्पादन, रक्षा क्षेत्र और रेल परिवहन इत्यादि ही रह गए है।

इतना ही नहीं लघु उद्योगों द्वारा उत्पादित अधिकांश वस्तुएँ भी अब अनारक्षित श्रेणी में आ गई हैं और अनेक उद्योगों में अब उत्पाद की कीमत निर्धारण का कार्य बाज़ार स्वयं करता है और यही उदारीकरण का लक्ष्य भी था।

Summary –

समय-समय पर अर्थव्यवस्था में कुछ न् कुछ आर्थिक सुधार किए जाते रहे है, लेकिन उदारीकरण एक ऐसा रिफॉर्म था जिसने आने वाले कल के विकास के लिए एक नींव रखी और भारत के विकास को सुनिश्चित किया।

उदारीकरण क्या है इसके बारे में यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेन्ट बॉक्स में और यदि आपके पास इससे जुड़ा कोई सवाल या सुझाव हो तो उसे भी लिख भेजें, हम उसका जल्द से जल्द जवाब देने की कोशिश करेंगे, धन्यवाद 🙂

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2 thoughts on “उदारीकरण क्या है Udarikaran Kya Hai इसका प्रभाव और फायदे”

  1. Bhai laga rah badiya site hai aur domain bhi old ho gya apply kar original hoga to adsens mil jayega mera YouTube channel Ankit tech creator

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