जब भी हम आकाश की तरफ देखते है तो इसका एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा देख पाते है, हमारी खगोलीय दुनिया तमाम तरह के रहस्यों से भरी हुई है, आमतौर पर हम अपने सम्पूर्ण जीवन में इसका केवल एक छोटा सा ही भाग देख पाते है।
हम अपने अपने ऊपर जो आकाश देखते है वह बहुत विशाल है, एक अनंत ब्रह्मांड है, जिसकी विशालता की केवल कल्पना ही की जा सकती है, और इसी ब्रह्मांड में हर सेखों लाखों-करोड़ों की संख्या में खगोलीय घटनाएं होती है और उन्हीं में से एक है, “ब्लैक होल” के बनने की घटना।
Hello Friends, स्वागत है आपका हमारे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है, ब्लैक होल के बारे में में Black Hole Kya Hai? यह कैसे बनता है? यह घटना क्यों घटित होती है? और इसके कारण है? जानेंगे इन सारी बातों के बारे में उम्मीद करता हूँ आपको यह लेख पसंद आएगा।
Black Hole Kya Hai In Hindi –
अंतरिक्ष में होने वाली खगोलीय घटनाओं में से ब्लैक होल बनने की भी एक महत्वपूर्ण घटना होती है, जिसपर काफी सालों से वैज्ञानिक शोध करने में लगे है ताकि इसके बारे में ज्यादा से ज्यादा जानकारी हासिल की जा सके।
वैसे तो इसके पीछे कई वैज्ञानिक और गणितीय कैलकुलेशन होती है, लेकिन यह आप सभी को आसानी से समझ में आए इसके लिए हम इसे एक आसान और सरल भाषा में समझेंगे।
जब कोई विशाल तारा अपने अंत की ओर पहुंचता है तो वह अपने केंद्र की ओर सिकुड़ने लगता है, इस दौरान उसकी गुरुत्वाकर्षण शक्ति इतनी बढ़ जाती है, वह एक ब्लैक होल में बदलने लगता है, इस दौरान यह इसके नजदीक आने वाली हर वस्तु को अपने पास खींच लेता है।
जब कोई तारा अपनी आयु पूरी कर लेता है तो उसका पूरा ईंधन जल जाता है, जिसके बाद उस तारे में एक विस्फोट होता है, इस घटना के बाद जो पदार्थ बचता है वह धीरे-धीरे आपस में ही सिमटना शुरू हो जाता है और यह एक बहुत ही घने पिंड का रूप ले लेता है, इसे न्यूट्रॉन स्टार कहते है।
न्यूट्रॉन स्टार की इस अवस्था में कोई तारा बहुत विशाल है तो उसका गुरुत्वाकर्षण बल आपस में इतना ज्यादा होगा कि वह खुद में ही सिकुड़ता चला जाएगा और एक समय पर वह इतना घना हो जाएगा कि वह एक ब्लैक होल का रूप ले लेगा।
ब्लैक होल के प्रभाव क्षेत्र को इवेंट हॉराइजन कहा जाता है इस क्षेत्र के अंदर आने वाली कोई भी चीज यह अपने अंदर खींच लेता है, इसका गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा हो जाता है, कि रोशनी या प्रकाश भी इससे बाहर नहीं निकाल सकता है।
मान लेते है कि यदि किसी ब्लैक होल के निकट एक टॉर्च जलाएं तो रोशनी सीधी न होकर ब्लैक होल की तरफ मुड़ जाएगी, लेकिन व्यवहरिक रूप से ब्लैक होल के करोड़ों किलोमीटर दूर भी किसी वस्तु का टिक पाना संभव नहीं है।
ब्लैक होल को काला (Black) इसलिए कहा जाता है, यह अपने पास पड़ने वाले प्रकाश को भी सोख लेता है और कुछ भी प्रवर्तित नहीं करता है, ऊष्मागतिकी के अनुसार यह एक आदर्श कृष्णिका की तरह है, अतः हिंदी में इसे “कृष्ण विवर” कहा जाता है।
दिखाई न देने के बावजूद ब्लैक होल अन्य पदार्थों के साथ अन्तः क्रिया के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्शाता है, जैसे – अंतरिक्ष में किसी खाली दिखने वाले हिस्से की परिक्रमा करते हुए तारों के समूह से लगाया जा सकता है।
Black Hole in Hindi –
किसी तारे के द्वारा अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस गिराते हुए दिखना, यह गैस गोल आकार में होल के अंदर की तरफ आती है और उच्च तापमान पर गरम होकर बहुत ज्यादा मात्रा में विकिरण छोड़ती है, जिसे पृथ्वी पर मौजूद तथा, धरती की कक्षा में मौजूद दूरबीनों के द्वारा पता लगाया जा सकता है।
इस तरह के किए गए अवलोकनों के फलस्वरूप यह वैज्ञानिकों ने सर्व सहमति से इस बात पर निर्णय लिया कि, ब्लैक होल के न दिखने के बावजूद हमारे इस विशाल ब्रह्मांड में यह अस्तित्व रखते है।
ब्लैक होल का निर्माण –
ब्लैक होल का निर्माण किसी न किसी तारे से होता है, जब कोई तारा अपने अंत के पास जाता है, तो उसमें कई सारे बड़े बदलाव होते है और अंततः वह एक ब्लैक होल में बदल जाता है।
तारे कैसे बनते है? – तारे का निर्माण होने से पहले यह धूल के गैसों के गोले के रूप में होते है, समय के साथ गुरुत्वाकर्षण के कारण ये धूल के कण पास-पास आने लगते है।
जिसे निहारिका (Nebula) कहा जाता है, जब ये कण अत्यधिक पास आते है तो ये काफी ज्यादा गर्म हो जाते है और इस गर्मी (नाभिकीय संलयन H – He) के कारण ये चमकने लगते है, इसे ही तारा कहा जाता है।
जब इस तारे की यह ऊर्जा खत्म होने लगती है तो यह लाल रंग में बदल जाता है, इसे लाल दानव के रूप में भी जाना जाता है, इस समय तारे का आकार काफी बड़ा हो जाता है।
अब यह लाल तारा अगले स्टेज में अगर छोटा है तो श्वेत वामन (White Dwarf) बन जाता है और इस समय कोई भी छोटा तारा अंतिम बार चमकता है छोटे तारे की इस स्थिति को जीवाश्म तारा कहते है और जब यह तारा पूरी तरह से चमकना बंद कर देता है तो, इसे काला वामन (Black Dwarf) कहते है।
अगर लाल तारे की स्टेज में कोई बहुत बड़ा तारा है तो वह इस अवस्था के बाद इस तारे में विस्फोट होता है और वह अभिनव तारा बनता है, अभिनव तारे के बाद यह चार तरह के तारे के रूप में बदलता है – न्यूट्रॉन, पल्सर, क्वेसर और ब्लैक होल, में से किसी एक रूप में इस तारे का अंत होता है।
ब्लैक होल की तस्वीर –
नीचे आप जो तस्वीर देख रहे है वह ब्लैक होल की वास्तविक तस्वीर है, चिली के यूरोपियन सदर्न ऑब्जरवेटरी के बहुत बड़े टेलिस्कोप इंटरफेरोमीटर से हमारी धरती के आकाशगंगा के केंद्र की तस्वीर लेने की कोशिश में थे।
इस दौरान उनको आकाशगंगा के केंद्र में अचानक रहस्यमयी ब्लैक होल सैगिटेरियस ए नजर आया, यह ब्लैक होल थोड़ी ही देर के लिए दिखता और अगले ही पल गायब हो जाता था।
बाद में इस बड़े से टेलिस्कोप के सहयोग में शामिल रिसर्चर की अंतराष्ट्रीय टीम ने इस इमेज को डेवलप किया है, इस छोटे से तस्वीर को लेने के धरती पर अलग-अलग जगहों पर मौजूद कई सारे बड़े-बड़े रेडियो टेलिस्कोप के नेटवर्क को इस्तेमाल किया गया था।
ब्लैक होल ऐसी चीज है जहां पर प्रकाश बाहर नहीं निकल सकता है, लेकिन कोई भी इमेज, चीजों के उपर से लौटकर वापस आने वाले प्रकाश से ही बनती है।
तो इस इमेज को लेने के लिए कैमरे का नहीं बल्कि बड़े-बड़े रेडियो टेलिस्कोप का प्रयोग किया गया है, दरअसल ब्लैक होल से आने वाली विकिरण की मात्रा को मापने के बाद इस इमेज को बनाया गया है।
किसी तारे के द्वारा अपेक्षाकृत छोटे ब्लैक होल में गैस गिराते हुए दिखना, यह गैस गोल आकार में होल के अंदर की तरफ आती है और उच्च तापमान पर गरम होकर बहुत ज्यादा मात्रा में विकिरण छोड़ती है, जिसे पृथ्वी पर मौजूद तथा, धरती की कक्षा में मौजूद दूरबीनों के द्वारा पता लगाया जा सकता है।
ब्लैक होल थ्योरी किसने दी? (black hole theory) –
हमारे ब्रह्मांड में ब्लाक होल की मौजूदगी की भविष्यवाणी सबसे पहले साल 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने की थी, गुरुत्वाकर्षण के सपेक्षिकता के सिद्धांत के आधार पर उन्होंने इसके अस्तित्व की व्याख्या की।
साल 1916 में ही वैज्ञानिक वैज्ञानिक कार्ल स्वर्स्चिल्ड (Karl Swarshchild) ने आइंस्टीन के इसी सिद्धांत के आधार पर ब्लैक होल के मौजूद होने की बात कही थी।
इसके कुछ सालों बाद साल 1967 में खगोलीय वैज्ञानिक जॉन व्हीलर ने ब्लैक होल नामक शब्द का इस्तेमाल किया और पहला ब्लैक होल साल 1971 में वैज्ञानिकों द्वारा खोजा गया और तब से लेकर अभी तक ऐसे बहुत से ब्लैक होल की खोज की जा चुकी है।
ब्लैक होल की आवाज कैसी होती है? –
हाल ही में नासा ने ब्लैक होल से आने वाली आवाज को रिकॉर्ड किया है, सुनने में बेहद डरावनी लगने वाली ये आवाजें पहली बार हमें सुनने को मिली है।
एक स्टडी में ब्लैक होल से निकलने वाली आठ नई आवाजों के बारे में पता चला है, इन गूंजने वाली आवाजों को ब्लैक होल बायनरीज (Black Hole Binaries) का नाम दिया गया है।
आप भी इस आवाज को सुन सकते है, नीचे दिए गए इस विडिओ को देख सकते है जो कि अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के द्वारा जारी किया गया है।
अक्सर पूछे जाने वाले सवाल –
वर्तमान में ब्लैक होल की संख्या कितनी है?
ब्रह्मांड में हर समय लाखों करोड़ों की संख्या में ब्लैक होल मौजूद है, वैज्ञानिकों का ऐसा कहना है कि, अभी तक जितने ब्लैक होल की खोज हुई है उनकी संख्या सीमित ही है।
ब्लैक होल की खोज सर्वप्रथम किसने की?
साल 1916 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने, गुरुत्वाकर्षण के सपेक्षिकता के सिद्धांत के आधार पर उन्होंने ब्लैक होल के अस्तित्व की व्याख्या की।
ब्लैक होल का निर्माण कैसे होता है?
ब्लैक होल बनने का सबसे सामान्य तरीका तारों की मृत्यु है, जब तारे अपने जीवन के अंत तक पहुँचते हैं, इसमें अधिकांश फूलेंगे, द्रव्यमान खो देंगे, और फिर सफेद बौने बनने के लिए ठंडा हो जाएंगे, इसमें बड़े तारे टूटने के बाद ब्लैक होल के रूप में परिवर्तित हो जाते है।
ब्लैक होल कितने प्रकार के है?
वैज्ञानिकों के अनुसार चार प्रकार के ब्लैक होल मौजूद है, स्टेलर, इंटरमीडिएट, सुपरमैसिव और मिनिएचर
Summary –
धरती पर पर इंसानों के लिए हर तरफ बहुत से आश्चर्य मौजूद है, फिर चाहे वह जमीन हो पानी हो या आकाश हो, अब तक हमने विज्ञान के इतने आविष्कार के बाद भी प्रकृति के कुछ ही रहस्यों से पर्दा उठाया है, जो कि बहुत कम है।
धीरे-धीरे बीतते समय के साथ हम इसकी और भी गहराई में जाएंगे तो इसके अन्य रहस्यों से भी पर्दा हटेगा, जिनके बारे में मानव जाति को पता होना चाहिए।
Black Hole Kya Hai, Black Hole in Hindi, के बारे में हमारा यह आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं और यदि इस टॉपिक से जुड़ा आपका कोई सवाल या सुझाव हो तो उसे नीचे कमेन्ट बॉक्स में जरूर लिखें, आपका कीमती समय देने के लिए धन्यवाद 🙂
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