दल बदल कानून, Dal Badal Kanoon Kya Hai, भारत में अक्सर चुनाव के समय लोकसभा और विधानसभा के उम्मीदवार पार्टियां बदल लेते है और किसी दूसरी पार्टी के साथ चुनाव लड़ते है।
अब चुनाव के समय तो ठीक है, लेकिन यदि जीतने के बाद कोई माननीय ऐसा करना चाहे तो उसके लिए कई नियम कानून है, जिसके तहत ही वे ऐसा कर सकते है, जब कोई सांसद या विधायक एक पार्टी को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी में शामिल होते है तो इससे न सिर्फ पार्टी को बल्कि देश को फायदे तो होते है, लेकिन इसके कुछ नुकसान भी है, जिसके बारे में हमें जानना चाहिए।
Hello Dosto, स्वागत है आपका हमरे ब्लॉग पर आज हम बात करने जा रहे है दल बदल कानून के बारे में Dal Badal Kanoon Kya Hai और क्यों लाया गया तथा इससे जुड़े कुछ अन्य महत्वपूर्ण चीजों के बारे में भी।
Dal Badal Kanoon Kya Hai –
Dal Badal Kanoon किसी सिटिंग विधायक या सांसद को एक पार्टी से दूसरे पार्टी में जाने से रोकने के लिए बनाया गया है।
राजनीति में में विधायकों या सांसदों द्वारा किसी एक पार्टी से दूसरी पार्टी में दलबदल होता रहता है, दलबदल विरोधी कानून के समर्थन में यह तर्क दिया जाता है कि वे कैबिनेट की स्थिरता को कमजोर कर सकते हैं, जो कि निर्वाचित विधायकों के समर्थन पर निर्भर करता है।
वर्तमान पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी में माननियों के जाने से राजनैतिक अस्थिरता पैदा हो सकती है और इस तरह की अस्थिरता के कारण जनादेश के साथ विश्वासघात हो सकता है।
समय-समय पर इन परिस्थितियों को उत्पन्न होते हुए देखें के बाद कई Constitutional Bodies की सिफारिशों के बाद, 2003 में संसद ने भारत के संविधान में 90वें संशोधन को पारित किया गया।
इस संशोधन ने दलबदलुओं की अयोग्यता के प्रावधानों को जोड़कर अधिनियम को मजबूत किया और उन्हें कुछ समय के लिए मंत्रियों के रूप में नियुक्त करने पर प्रतिबंध लगा दिया।
भारत जैसे सबसे विशाल लोकतांत्रिक देश में चुनाव हर 5 साल पर आयोजित होते है ऐसे में चुनाव लोगों को अपनी इच्छा जताने का मौका होता है, जिसे वे अपने वोट के माध्यम से व्यक्त करते है।
दलबदल विरोधी कानून के पक्ष में कुछ लोगों का तर्क यह भी है कि चुनावों के बीच होने वाले राजनीतिक दल-बदल, बहुमत लोगों की व्यक्त इच्छा को कमजोर करते है।
किसी पार्टी के खिलाफ लोगों ने किसी उमीदवार को बहुमत दिया अब जीतने के बाद वे माननीय उसी विरोधी पार्टी के साथ जुड़ गए तो इसका आम जनता के एक बहुत बड़े विश्वासघात के रूप में देखा जाता है, जो कि कहीं से सही नहीं है।
हालंकी अगर इतिहास में देखा जाए तो भारत की आजादी मिलने से पहले भी भारत की राजनीति में नेताओं का दल-बदल होना आम बात थी, सन् 1960 के आसपास शुरू हुई गठबंधन की राजनीति के उदय ने दल-बदल की घटनाओं में वृद्धि की क्योंकि निर्वाचित प्रतिनिधियों ने मंत्रियों के मंत्रिमंडल में जगह लेने की मांग करने लगे थे।
दल बदल कानून क्या है –
वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन के द्वारा देश में ‘दल-बदल विरोधी कानून’ बनाया गए, इसके साथ ही संविधान की दसवीं अनुसूची जिसमें दल-बदल विरोधी कानून शामिल है उसको संशोधन के माध्यम से भारतीय संविधान से जोड़ा गया।
दल-बदल विरोधी कानून का मुख्य उद्देश्य भारतीय राजनीति में ‘दल-बदल’ की कुप्रथा को समाप्त करना था, जो कि 1970 के दशक से पहले से समय में भारतीय राजनीति में बहुत ज्यादा प्रचलन में थी।
Dal Badal Virodhi Kanoon, 10वीं अनुसूची के माध्यम से लाया गया था, जिसमें कोई भी सांसद या विधायक अपनी सदस्यता को त्याग देता है या फिर पार्टी के वोटिंग से बच जाते है, तो ऐसी स्थिति में उसे अयोग्य घोषित कर दिया जाता है।
सदन में इस सदस्यता को रद्द करने का अधिकार स्पीकर के पास होता है, हर पार्टी के अंदर एक मुख्य सचेतक (Cheef Whip) होता है जो अपने मेम्बर की शिकायत स्पीकर के पास ले जाता है, जिसके बाद स्पीकर उस माननीय सदस्य को अयोग्य घोषित कर देते है।
इसके अलावा 1985 में एक दूसरा नियम लाया गया कि यदि 1/3 पार्टी के मेम्बर अपनी मौजूद पार्टी को छोड़कर किसी दूसरी पार्टी को ज्वाइन कर लेते है, तो इसे अलाउ माना जाता था, लेकिन बाद में इस नियम में कुछ परिवर्तन किये गए और कुछ नए नियमों को शामिल किया गया कि मर्जर (विलय) केवल तभी संभव माना जाएगा, जब दो तिहाई सदस्य एक साथ मौजूदा पार्टी को छोड़कर किसी पार्टी में जाते है।
यदि एक तिहाई सदस्य मौजूदा पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी को ज्वाइन करते है तो, ऐसा करने वाले सदस्यों को अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा, यदि वे माननीय सांसद है तो वे सांसद नहीं रह रहेंगे, और यदि वे माननीय विधायक है तो वे विधायक नहीं रहेंगे।
राज्यसभा के अंदर 12 सांसद ऐसे होते है जो राष्ट्रपति के द्वारा नॉमिनेट या किये जाते है, यदि राष्ट्रपति के द्वारा मनोनीत कोई भी सांसद पद पर आने 6 महीने के भीतर कोई दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लेता है तो उसकी सदस्यता नहीं जाती है, लेकिन यदि 6 महीने के बाद वह कोई दूसरी पार्टी ज्वाइन कर लेता है तो वह जिस पद पर चुनाव जीत कर आए है वह पद चला जाता है।
यदि कोई निर्दलीय सदस्य ऐसा कार्य करता है तो उनकी भी सदस्यता रद्द हो जाती है, वे विधायक या सांसद के रूप में चुने गए होते है तो फिर वे उस पद पर नहीं रह जाएंगे।
संक्षेत में इसे समझें तो इस कानून के तहत किसी भी जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित किया जा सकता है अगर –
एक निर्वाचित सदस्य अपनी इच्छा से किसी राजनीतिक दल की सदस्यता का त्याग कर देता है।
या
कोई भी निर्दलीय निर्वाचित सदस्य किसी राजनीतिक दल में शामिल हो जाता है।
या
पार्टी के किसी सदस्य द्वारा सदन में पार्टी के पक्ष के विपरीत वोट किया जाता है या जब कोई सदस्य खुद को वोटिंग से अलग रखता है।
कानून के मुताबिक छ महीने तक तो किस पार्टी में दल बदल किया जा सकता है, लेकिन छह महीने के बाद कोई मनोनीत सदस्य किसी अन्य राजनीतिक पार्टी में शामिल हो जाता है, तो इस स्थिति में सदस्यता रद्द कर दी जाती है।
क्या स्पीकर के द्वारा लिया गया निर्णय चैलेंज किया जा सकता है? –
इस विषय के बारे में बहुत बार प्रश्न बना है और सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुँचा है लेकिन इसके बारें स्पष्ट गाइड्लाइन नहीं बन पाई है, इस मामले में स्पीकर का फैसला बहुत बार चर्चा का विषय बना है कि स्पीकर ने अपने अनुसार निर्णय ले लिया।
स्पीकर के दो सबसे बड़े कार्य है पहला तो वे किसी भी बिल को ‘मनी बिल’ बता सकते है और दूसरा दल बदल कानून के मामले में किसी को अयोग्य मान सकते है या नहीं, ये दोनों नियम स्पीकर के विवेकाधीन अधिकार है, अब इसके बारे में कोर्ट में चैलेंज तो किया जाता है लेकिन इससे संबंधित कोई स्पष्ट गाइडलाइन अभी तक नहीं बनाई गई है।
कानून से जुड़ा किस्सा –
यह कानून एक दिलचस्प घटना के कारण प्रसिद्ध है, हरियाणा के हसनपुर निर्वाचन क्षेत्र जिसे अब होडल के नाम से जाना जाता है, यहाँ से विधान सभा के सदस्य गया लाल ने 1967 में एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे।
और उन्होंने एक दिन में ही तीन बार पार्टी बदली, पहले राजनीतिक रूप से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संयुक्त मोर्चे में दलबदल करके, फिर प्रतिवाद करके वापस कांग्रेस में शामिल होकर, और फिर नौ घंटे के भीतर प्रतिवाद करके फिर से संयुक्त मोर्चे में शामिल हो गए।
जब गया लाल ने संयुक्त मोर्चा छोड़ दिया और कांग्रेस में शामिल हो गए, तो कांग्रेस नेता राव बीरेंद्र सिंह , जिन्होंने गया लाल के कांग्रेस में दलबदल की योजना बनाई थी।
चंडीगढ़ में एक संवाददाता सम्मेलन में गया लाल को लाए और घोषणा की कि “गया राम अब आया राम थे”, यहीं से यह जुमला प्रसिद्ध हो गया और जब कोई भी नेता एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल होता है तो उसे “आया राम गया राम” कहा जाता है।
दल बदल कानून से जुड़े फ़ैक्ट –
1. साल 1967 में गया लाल ने एक ही दिन में तीन बार पार्टी बदली थी।
2. ‘आया राम गया राम’ उनके द्वारा किये गए इस रिकार्ड के बाद इस्तेमाल किया गया और आज भी इस मामले में यह जुमला प्रसिद्ध है।
3. अगर इतिहास में देखें तो हरियाणा दलबदलू राजनीति का केंद्र रहा है, यहाँ की राजनीति में 1990, 1996, 2004 और 2009 में कई बार नेताओं द्वारा एक पार्टी को छोड़कर दूसरी पार्टी ज्वाइन करने के मामले सामने आए।
Summary –
वैसे तो राजनैतिक पार्टियों के अंदर बहुत से फेरबदल होते रहते है, लेकिन इसकी वजह से पार्टी पर या देश के ऊपर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े, इसका सभी पार्टियों को ख्याल रखना चाहिए।
तो दोस्तों, Dal Badal Kanoon के बारे में यह लेख आपको कैसा लगा हमें जरूर बताएं नीचे कमेंट बॉक्स में यदि आपके पास इससे जुड़ा हुआ कोई भी सवाल या सुझाव हो तो उसे भी लिखना न भूलें, अपना कीमती समय देने के लिए धन्यवाद 🙂
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